M.A.2nd Sem, KU-Women's Studies, Paper-3, Unit-II (Feminists' debate on development and change)Class Notes

 By

Dr. Farzeen Khan

Unit-II: विकास और परिवर्तन पर नारीवादियों की बहस

यह यूनिट निम्नलिखित विषयों के आधार पर विकास और परिवर्तन पर नारीवादियों की बहस को समझने का पृयास करेगी:

1.विकास में महिलाएँ (WID) बनाम लिंग और विकास (GAD)

 I. प्रारंभिक विकास मॉडल ने लिंग को नज़रअंदाज़ किया; बाद के दृष्टिकोणों ने समावेश पर ध्यान केंद्रित किया

 II. आर्थिक सशक्तीकरण और लिंग-संवेदनशील नीतियों पर नारीवादी दृष्टिकोण

2. वैश्वीकरण और नवउदारवाद का प्रभाव

 I. कार्यबल में महिलाएँ: अवसर और शोषण

 II. अनौपचारिक क्षेत्र में रोज़गार और वेतन असमानताएँ

III. गरीबी का नारीकरण और संसाधनों तक पहुँच की कमी

3. महिला आंदोलन और परिवर्तन

I. नारीवाद की लहरें और नीति-निर्माण पर उनका प्रभाव।

II. लिंग-संवेदनशील कानूनों को आकार देने में जमीनी स्तर के आंदोलनों की भूमिका

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परिचय

नारीवादियों का मानना है कि विकास और परिवर्तन के लिए महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाना ज़रूरी है. नारीवादी दृष्टिकोण से, विकास और परिवर्तन के लिए भेदभाव और असमानता को दूर करना ज़रूरी है. नारीवादी विकास नीतियां, अन्याय के मूल कारणों को दूर करके सभी लिंगों के लिए समानता बढ़ाती हैं.

 नारीवादी दृष्टिकोण से विकास और परिवर्तन के लिए ज़रूरी बातें:

  • महिलाओं और लड़कियों की आवाज़ को सुनना और उन्हें सशक्त बनाना
  • शक्तिशाली लोगों को उनके मानवाधिकार दायित्वों के लिए जवाबदेह ठहराना
  • विविधता और समावेश को बढ़ावा देना
  • लिंग, जाति, और वर्ग जैसी असमानताओं को दूर करना
  • महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले हिंसा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना

नारीवादियों ने लंबे समय से यह बहस की है कि विकास (Development) और सामाजिक परिवर्तन (Social Change) महिलाओं के जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं। शुरूआती विकास मॉडल महिलाओं की भूमिका को नज़रअंदाज करते थे, लेकिन बाद में लैंगिक समावेशन (Gender Inclusion) को महत्व दिया जाने लगा। इस बहस के प्रमुख मुद्दे महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण, वैश्वीकरण का प्रभाव, और महिला आंदोलनों की भूमिका हैं।

1. विकास में महिलाएँ (Women in Development - WID) बनाम लिंग और विकास (Gender and Development - GAD)

विकास के क्षेत्र में नारीवादी दृष्टिकोण समय के साथ विकसित हुए हैं, जिनमें प्रमुखतः दो दृष्टिकोण सामने आए हैं: 'विकास में महिलाएं' (Women in Development - WID) और 'लिंग और विकास' (Gender and Development - GAD)। इन दोनों दृष्टिकोणों का उद्देश्य महिलाओं की स्थिति में सुधार करना है, लेकिन उनकी रणनीतियाँ और दृष्टिकोण भिन्न हैं।

प्रारंभिक विकास मॉडल और लिंग की अनदेखी

प्रारंभिक विकास मॉडल में लिंग के मुद्दों की अनदेखी की गई थी, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं की आवश्यकताओं और योगदानों को पर्याप्त मान्यता नहीं मिली। 

पहले के विकास मॉडल मुख्य रूप से आर्थिक वृद्धि (Economic Growth) और औद्योगीकरण (Industrialization) पर केंद्रित थे, जिससे महिलाओं की भूमिका और उनके मुद्दों को दरकिनार कर दिया गया।

महिलाओं को "अर्थव्यवस्था के लाभार्थी" के रूप में देखा जाता था, न कि आर्थिक उत्पादन में भागीदार के रूप में।

महिलाओं की घरेलू श्रम (Unpaid Domestic Work) और देखभाल कार्य (Care Work) को विकास नीति में शामिल नहीं किया गया।

उदाहरण:

  • 1950-60 के दशक में कई विकास योजनाओं में महिलाओं की भूमिका को कृषि और घरेलू कार्यों तक सीमित रखा गया।
  • औद्योगीकरण में पुरुषों को प्राथमिकता दी गई, जबकि महिलाएँ श्रम शक्ति में पीछे रह गईं।

'विकास में महिलाएं' (WID) दृष्टिकोण

WID का उदय 1960 के दशक में हुआ।
WID का प्रारंभिक लक्ष्य समानता को संबोधित करना और महिलाओं को वैश्विक अर्थव्यवस्था में एकीकृत करना था।
बाद में WID का ध्यान इस बात पर केंद्रित हो गया कि महिलाएं विकास में किस प्रकार योगदान दे सकती हैं।

WID का उद्देश्य

WID यह मानता है कि विकास में महिलाओं को अक्सर हाशिए पर रखा जाता है।   
WID का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि महिलाओं को विकास में भाग लेने के अवसर मिलें।  
WID महिलाओं के कौशल विकास को समर्थन देता है ताकि उन्हें आय अर्जित करने में सहायता मिल सके।   

 उत्पत्ति और पृष्ठभूमि

WID दृष्टिकोण 1960-1970 के दशक में उभरा, जब यह महसूस किया गया कि विकास परियोजनाओं में महिलाओं की भागीदारी की अनदेखी की जा रही है। इस दृष्टिकोण का उद्देश्य महिलाओं को विकास प्रक्रिया में शामिल करना था ताकि उनकी उत्पादकता बढ़ाई जा सके और उनके जीवन स्तर में सुधार हो सके।

एस्थर बोसेरप (1910-1999): उनकी पुस्तक "Women's Role in Economic Development" (1970) में उन्होंने तर्क दिया कि महिलाओं की आर्थिक भागीदारी को बढ़ावा देने से समग्र विकास में वृद्धि होगी।

मुख्य विशेषताएँ

  • - महिलाओं का एकीकरण: महिलाओं को कार्यबल में शामिल करना और उनकी उत्पादकता बढ़ाना।
  •  प्रायोगिक आवश्यकताओं पर ध्यान: महिलाओं की व्यावहारिक आवश्यकताओं, जैसे कौशल विकास और आय सृजन, पर ध्यान केंद्रित करना।

- सीमाएँ:

WID दृष्टिकोण को आलोचना मिली कि यह पुरुषों और महिलाओं के बीच शक्ति संबंधों का विश्लेषण नहीं करता और केवल महिलाओं की व्यावहारिक आवश्यकताओं पर ध्यान देता है, जिससे संरचनात्मक असमानताएँ बनी रहती हैं। 

यह केवल महिलाओं को कार्यबल में जोड़ने पर केंद्रित था, लेकिन पितृसत्ता और संरचनात्मक असमानता को चुनौती नहीं देता था।

'लिंग और विकास' (GAD) दृष्टिकोण

यह पितृसत्ता, शक्ति संरचनाओं और आर्थिक नीतियों की गहरी जांच करता है।

उत्पत्ति और पृष्ठभूमि

1980 के दशक में GAD दृष्टिकोण उभरा, जो WID की सीमाओं को पहचानते हुए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाता है। यह दृष्टिकोण लिंग संबंधों और सामाजिक संरचनाओं का विश्लेषण करता है जो महिलाओं की अधीनस्थ स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं।

कैरोलीन मोसर: उन्होंने GAD के लिए "लैंगिक योजना रूपरेखा" विकसित की, जो विकास योजनाओं में लैंगिक विश्लेषण को शामिल करने पर जोर देती है।

मुख्य विशेषताएँ

  • सामाजिक निर्माण का विश्लेषण: पुरुषों और महिलाओं के बीच सामाजिक रूप से निर्मित अंतर और शक्ति संबंधों का अध्ययन।
  • समानता पर ध्यान: विकास प्रक्रिया में पुरुषों और महिलाओं दोनों की समान भागीदारी और लाभ सुनिश्चित करना। 
  • संरचनात्मक परिवर्तन: सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक संरचनाओं में परिवर्तन की आवश्यकता पर जोर देना जो लिंग असमानताओं को बनाए रखते हैं।

WID और GAD के बीच अंतर

दृष्टिकोण का फोकस:

WID: महिलाओं को विकास प्रक्रिया में शामिल करना।

GAD: लिंग संबंधों और सामाजिक संरचनाओं का विश्लेषण करना।

रणनीति:

WID: महिलाओं की व्यावहारिक आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करना।

GAD: महिलाओं की रणनीतिक आवश्यकताओं, जैसे निर्णय लेने में भागीदारी और कानूनी अधिकार, पर ध्यान देना।

सीमाएँ:

WID: शक्ति संबंधों का विश्लेषण नहीं करता।

GAD: सामाजिक और सांस्कृतिक कारकों की अनदेखी करने के लिए आलोचना की गई है।

नारीवादी दृष्टिकोण: आर्थिक सशक्तिकरण और लिंग-संवेदनशील नीतियाँ

 आर्थिक सशक्तिकरण (Economic Empowerment):

नारीवादी दृष्टिकोण के अनुसार, महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण उनके समग्र सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें महिलाओं की आय बढ़ाने, संपत्ति के स्वामित्व, और वित्तीय संसाधनों तक पहुंच सुनिश्चित करने पर जोर दिया जाता है।

  • महिलाओं के लिए आर्थिक स्वतंत्रता (Financial Independence) महत्वपूर्ण है
  • स्व-रोज़गार, लघु उद्योग, और महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने की जरूरत है।
  • महिलाओं को ऋण योजनाओं और वित्तीय संसाधनों तक पहुँच मिलनी चाहिए।
  • उदाहरण: भारत में "सेल्फ हेल्प ग्रुप्स (SHGs)" महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने में मदद कर रहे हैं।

 लैंगिक-सम्वेदनशील नीतियाँ (Gender-Sensitive Policies):

लिंग-संवेदनशील नीतियाँ उन नीतियों को संदर्भित करती हैं जो लिंग आधारित असमानताओं को पहचानती हैं और उन्हें दूर करने का प्रयास करती हैं। इन नीतियों का उद्देश्य महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए समान अवसर और संसाधनों तक पहुंच सुनिश्चित करना है।

  • महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश (Maternity Leave), समान वेतन (Equal Pay), और कार्यस्थल सुरक्षा जैसे कानून जरूरी हैं।
  • उदाहरण: भारत में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) में महिलाओं को 33% आरक्षण दिया गया है।

निष्कर्ष

WID और GAD दोनों दृष्टिकोणों का उद्देश्य महिलाओं की स्थिति में सुधार करना है, लेकिन उनकी रणनीतियाँ और दृष्टिकोण भिन्न हैं। WID जहां महिलाओं के एकीकरण पर ध्यान देता है, वहीं GAD लिंग संबंधों और सामाजिक संरचनाओं के विश्लेषण पर जोर देता है। वर्तमान में, विकास नीतियों में GAD दृष्टिकोण को अधिक समग्र और प्रभावी माना जाता है।

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 2 वैश्वीकरण, नवउदारवाद  और  महिलाऐं: नारीवादी दृष्टिकोण

परिचय:

वैश्वीकरण क्या है?

वैश्वीकरण का अर्थ है दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं, समाजों और संस्कृतियों का आपस में बढ़ता जुड़ाव, जो प्रौद्योगिकी, व्यापार, वित्त और संचार में प्रगति के कारण संभव हुआ है। यह वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी, लोगों और विचारों की राष्ट्रीय सीमाओं के पार आवाजाही को दर्शाता है।
वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक एकीकरण शामिल है, जो अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक उत्पादन, प्रवास, संचार और तकनीकी विस्तार के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है। 

नवउदारवाद क्या है

नवउदारवाद एक आर्थिक विचारधारा है जो मुक्त बाजार (free market), विनियमन में कमी (deregulation), निजीकरण (privatization) और अर्थव्यवस्था में सरकार की न्यूनतम भूमिका को प्रोत्साहित करती है। 
नवउदारवाद, जो शास्त्रीय उदारवादी आर्थिक विचारों पर आधारित है, का मानना है कि एक अप्रतिबंधित पूंजीवादी अर्थव्यवस्था स्वतंत्र व्यक्तिगत चयन का आदर्श रूप है और यह आर्थिक दक्षता, वृद्धि, तकनीकी प्रगति और वितरणात्मक न्याय को अधिकतम करता है। 
यह निम्नलिखित सिद्धांतों का समर्थन करता है:
  • मुक्त व्यापार (टैरिफ और व्यापार बाधाओं को कम करना)
  • विनियमन में कमी (सरकार के व्यापार नियंत्रण को कम करना)
  • निजीकरण (सार्वजनिक सेवाओं को निजी क्षेत्र में स्थानांतरित करना)
  • कल्याणकारी योजनाओं में कटौती (स्व-निर्भरता को बढ़ावा देने के लिए सरकारी सामाजिक खर्च को कम करना)
नवउदारवादी नीतियाँ 20वीं सदी के उत्तरार्ध में प्रसिद्ध हुईं, विशेष रूप से अमेरिका के राष्ट्रपति रॉनाल्ड रीगन और ब्रिटेन की प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर के नेतृत्व में।
वैश्वीकरण और नवउदारवाद आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं, जहाँ नवउदारवादी नीतियाँ वैश्वीकरण को दिशा देती हैं। हालाँकि, इन दोनों ने आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया है, लेकिन साथ ही असमानता, श्रमिक शोषण और सामाजिक चुनौतियों को जन्म दिया है। इस कारण, कई विद्वान यह बहस करते हैं कि वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए विनियमन और नीतिगत सुधार आवश्यक हैं।

नवउदारवादी नीतियाँ:

नवउदारवादी नीतियों में शामिल हैं:

1. व्यापार उदारीकरण: मुक्त व्यापार नीतियाँ, जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका-मेक्सिको-कनाडा समझौता, देशों के बीच व्यापार बाधाओं को कम करके क्षेत्रीय या वैश्विक बाजारों को एकीकृत करने का प्रयास करती हैं। 
2. नियमन में कमी: पूंजी प्रवाह और निवेश पर प्रतिबंधों को कम करना, साथ ही श्रमिकों, उपभोक्ताओं और पर्यावरण के लिए कानूनी सुरक्षा जैसे सरकारी नियमों को हटाना।
3. सार्वजनिक संपत्तियों का निजीकरण: राज्य-स्वामित्व वाली उद्यमों, जैसे बैंक, उद्योग, परिवहन, ऊर्जा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा, को निजी निवेशकों को बेचना।
4. सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों का उन्मूलन: आवास, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और बेरोजगारी बीमा जैसे सामाजिक सेवाओं के लिए सार्वजनिक खर्च में कटौती । 

वैश्वीकरण और नवउदारवाद का महिलाओं पर प्रभाव: नारीवादी दृष्टिकोण

नवउदारवादी वैश्वीकरण का महिलाओं पर मिश्रित प्रभाव पड़ा है:

- सकारात्मक प्रभाव: वैश्वीकरण ने महिलाओं को नई ऊँचाइयाँ दी हैं, जैसे रोजगार के नए अवसर और आर्थिक स्वतंत्रता। 
- नकारात्मक प्रभाव: महिलाओं को रोजगार असुरक्षा, कम वेतन, पारंपरिक कौशल की अनदेखी, और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मनमानी शर्तों का सामना करना पड़ा है। 
नवउदारवाद एवं वैश्वीकरण का महिलाओं पर प्रभाव को निम्न रूप में समझा जा सकता है:

I. महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी: अवसर और शोषण

  • वैश्वीकरण ने महिलाओं के लिए नई नौकरियों और व्यावसायिक अवसरों को जन्म दिया।
  • लेकिन यह उनके शोषण (Exploitation) और असुरक्षा (Job Insecurity) को भी बढ़ा सकता है।
  • महिला श्रम शक्ति (Female Workforce Participation) में वृद्धि हुई, लेकिन कई महिलाओं को अनौपचारिक क्षेत्र (Informal Sector) में काम करना पड़ा।

उदाहरण:

  • भारत की "गारमेंट इंडस्ट्री (Garment Industry)" में काम करने वाली महिलाएँ कम वेतन और असुरक्षित श्रम परिस्थितियों का सामना करती हैं।
  • बांग्लादेश की रेडीमेड गारमेंट्स (RMG) इंडस्ट्री में 80% से अधिक महिलाएँ कार्यरत हैं, लेकिन उन्हें न्यूनतम वेतन मिलता है।

II. अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार और वेतन असमानता (Informal Sector Employment and Wage Disparities)

  • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था (Informal Economy) में काम करने वाली महिलाओं को कानूनी सुरक्षा नहीं मिलती।
  • महिलाओं को कम वेतन (Wage Gap) दिया जाता है, जबकि पुरुषों को समान काम के लिए अधिक वेतन मिलता है।
  • घरेलू कामगार, निर्माण श्रमिक, और अस्थायी मजदूर महिलाओं के शोषण का सबसे अधिक शिकार होते हैं।

उदाहरण:

भारत में महिला श्रमिकों को पुरुष श्रमिकों की तुलना में 30-50% कम वेतन मिलता है।

III. महिला गरीबीकरण (Feminization of Poverty) और संसाधनों की कमी

  • नवउदारवादी नीतियों के कारण महिलाओं की आर्थिक असुरक्षा (Economic Insecurity) बढ़ गई है।
  • भूमि अधिकार (Land Rights), ऋण तक पहुँच (Access to Credit), और सामाजिक सुरक्षा (Social Security) में महिलाओं को भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
  • महिलाओं की गरीबी पुरुषों की तुलना में अधिक होती जा रही है।

उदाहरण:

भारत में महिला किसानों को औपचारिक बैंक ऋण प्राप्त करने में कठिनाई होती है, जिससे वे साहूकारों पर निर्भर हो जाती हैं।

 वैश्वीकरण पर नारीवादी आलोचना: विस्तृत विश्लेषण 

नारीवादी विचारक वैश्वीकरण के विभिन्न पहलुओं की आलोचना करते हैं, क्योंकि यह संरचनात्मक असमानताओं को बनाए रखता और गहरा करता है। इनकी मुख्य चिंताओं को विस्तृत रूप से समझते हैं:  

1. आर्थिक न्याय और महिलाओं का शोषण

नारीवादी वैश्वीकरण की आर्थिक नीतियों की आलोचना क्यों करते हैं?

(i) असंगठित क्षेत्र और निम्न वेतन: 

- वैश्वीकरण के कारण बड़ी संख्या में महिलाएँ असंगठित क्षेत्र (unorganized sector) में काम करने को मजबूर होती हैं।  
- बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (MNCs) कम लागत वाले श्रम की तलाश में विकासशील देशों में उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करती हैं, जहाँ महिलाएँ कम वेतन पर अस्थायी या अनुबंधित श्रमिक के रूप में कार्य करती हैं।  
- फैशन, टेक्सटाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, और कृषि उद्योगों में महिला श्रमिकों का भारी शोषण होता है।  
- उदाहरण: बांग्लादेश, वियतनाम और भारत में रेडीमेड गारमेंट उद्योग में महिलाओं को न्यूनतम मजदूरी से भी कम भुगतान किया जाता है।  

(ii) कार्य स्थितियाँ और सामाजिक सुरक्षा का अभाव: 

- महिलाओं को खतरनाक परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, जैसे जहरीले रसायनों का उपयोग, लंबे समय तक कार्य, और बिना किसी स्वास्थ्य लाभ या मातृत्व अवकाश के श्रम।  
- नवउदारवादी सुधारों के कारण सरकारें श्रमिक कल्याण नीतियों को कम कर रही हैं, जिससे महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा नहीं मिलती।  

(iii) लिंग-आधारित असमानता: 

- पुरुषों की तुलना में महिलाओं को समान कार्य के लिए कम वेतन दिया जाता है (Gender Wage Gap)।  
- महिलाएँ अक्सर कम वेतन वाले "नरम कौशल" (soft skills) जैसे केयर वर्क, नर्सिंग, शिक्षा, और घरेलू कार्यों तक सीमित रहती हैं।  

2. प्रवासन और महिलाओं का शोषण  

महिलाओं का प्रवासन कैसे उन्हें नए शोषण और असुरक्षा में डालता है?

(i) घरेलू कामगार और असुरक्षा: 

- प्रवासी महिलाएँ अमीर देशों में घरेलू कामगार (domestic workers) के रूप में जाती हैं, जहाँ वे अक्सर शारीरिक और मानसिक शोषण का शिकार होती हैं।  
- वे न्यूनतम वेतन और कानूनी सुरक्षा के बिना काम करती हैं।  
- उदाहरण: खाड़ी देशों में दक्षिण एशियाई और फिलीपीन की महिलाएँ घरेलू नौकरों के रूप में काम करती हैं और उनके साथ दुर्व्यवहार की घटनाएँ आम हैं।  

(ii) लैंगिक तस्करी (Human Trafficking):  

- वैश्वीकरण के कारण अवैध प्रवासन और मानव तस्करी बढ़ी है, विशेष रूप से गरीबी और बेरोजगारी से जूझ रहे देशों में।  
- महिलाओं और लड़कियों को झूठे वादों से विदेश ले जाकर यौन शोषण और बंधुआ मजदूरी में धकेल दिया जाता है।  

(iii) अस्थिरता और शरणार्थी संकट: 

- वैश्वीकरण के कारण संघर्ष और युद्ध बढ़े हैं, जिससे महिलाओं को अपने देश से पलायन करना पड़ता है।
- युद्धग्रस्त क्षेत्रों में प्रवासी महिलाएँ दोहरी असुरक्षा (double vulnerability) झेलती हैं – एक तो शरणार्थी होने के कारण, दूसरा लिंग आधारित हिंसा के कारण।  
- उदाहरण: सीरिया और अफगानिस्तान से प्रवासी महिलाओं को शरणार्थी शिविरों में यौन उत्पीड़न और शोषण का सामना करना पड़ता है।  

3. मानवाधिकारों का उल्लंघन और वैश्वीकरण 

वैश्वीकरण महिलाओं के मानवाधिकारों का उल्लंघन कैसे करता है? 

(i) श्रम अधिकारों का उल्लंघन: 

- महिलाओं को जबरन ओवरटाइम करने, अनुबंध के बिना काम करने और न्यूनतम वेतन से कम पैसे पर काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।  
- वे श्रम संघों (labor unions) में शामिल नहीं हो पातीं क्योंकि नवउदारवादी नीतियाँ संगठित श्रमिक आंदोलनों को कमजोर करती हैं।  

(ii) स्वास्थ्य और कल्याण पर प्रभाव: 

- नवउदारवादी सुधारों के कारण सरकारें स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश कम कर रही हैं, जिससे गरीब महिलाओं के लिए उचित स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच कम होती जा रही है।  
- वैश्वीकरण के कारण पर्यावरणीय क्षति बढ़ी है, जिससे जल संकट, प्रदूषण और बीमारियाँ बढ़ रही हैं, जिनका सीधा प्रभाव महिलाओं की सेहत पर पड़ता है।  
- उदाहरण: औद्योगिकरण के कारण कई देशों में जल और वायु प्रदूषण से गर्भवती महिलाओं और बच्चों की सेहत पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।  

(iii) सांस्कृतिक उपनिवेशवाद और पितृसत्तात्मक मूल्य: 

- वैश्वीकरण पश्चिमी सौंदर्य मानकों, उपभोक्तावाद और मीडिया छवियों को बढ़ावा देता है, जिससे महिलाओं पर अवास्तविक शारीरिक और सामाजिक अपेक्षाएँ थोप दी जाती हैं।  
- महिलाओं की वस्तुकरण (objectification) बढ़ गई है, खासकर फैशन, मनोरंजन और विज्ञापन उद्योग में।  

4. लोकतंत्र और वैश्विक शासन पर प्रभाव 

वैश्वीकरण के कारण लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का क्षरण कैसे हुआ?  

(i) बहुराष्ट्रीय निगमों (MNCs) का प्रभुत्व:

- वैश्वीकरण के कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (MNCs) सरकारों से अधिक शक्तिशाली हो गई हैं और नीतिगत निर्णयों को प्रभावित करने लगी हैं।  
- कई देशों में लोकतांत्रिक प्रक्रियाएँ कमजोर हुई हैं क्योंकि सरकारें आम जनता की बजाय निजी कंपनियों के हितों को प्राथमिकता देने लगी हैं।  

(ii) महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में बाधा: 

- नवउदारवादी सुधारों के कारण सरकारों ने सार्वजनिक सेवाओं और कल्याणकारी योजनाओं में कटौती की, जिससे महिलाओं पर घरेलू कार्य और देखभाल का बोझ बढ़ गया।  
- इस कारण महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी और नेतृत्व में भूमिका सीमित हो गई।  

(iii) श्रमिक आंदोलनों और नागरिक संगठनों को कमजोर करना:

- वैश्वीकरण के कारण ट्रेड यूनियनों और नारीवादी आंदोलनों को कमजोर किया गया है, जिससे महिलाओं के अधिकारों के लिए सामूहिक संघर्ष करना मुश्किल हो गया है।  
- सरकारें "विकास" के नाम पर विरोध प्रदर्शनों को दबाने लगी हैं।  

समाधान के लिए संभावित कदम:

- श्रमिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए कड़े कानून।  
- लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाली आर्थिक नीतियाँ।  
- प्रवासी महिलाओं के लिए सुरक्षित और कानूनी श्रम विकल्प।  
- बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए जवाबदेही तय करने वाले अंतर्राष्ट्रीय कानून।  
- महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी और निर्णय लेने की शक्ति बढ़ाने के प्रयास।  
इन सुधारों के बिना, वैश्वीकरण और नवउदारवाद महिलाओं की स्थिति को और अधिक कमजोर बना सकते हैं।

निष्कर्ष:

वैश्वीकरण और नवउदारवाद ने महिलाओं के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला है, जिसमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू शामिल हैं। नारीवादी दृष्टिकोण इन प्रभावों की गहन समीक्षा करते हैं और महिलाओं के अधिकारों और समानता की दिशा में सुधार के लिए नीतिगत बदलावों की मांग करते हैं। 
वैश्वीकरण और नवउदारवाद ने महिलाओं के जीवन को कई तरीकों से प्रभावित किया है। हालाँकि, आर्थिक अवसर बढ़े हैं, लेकिन असमानता, शोषण और असुरक्षा भी बढ़ी है। नारीवादी आलोचना इस बात पर जोर देती है कि महिलाओं की सशक्तिकरण नीतियों को वैश्वीकरण की मौजूदा संरचना के भीतर समायोजित करने के बजाय, एक अधिक समतावादी और न्यायसंगत वैश्विक आर्थिक प्रणाली बनाई जाए

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3. महिला आंदोलन और सामाजिक परिवर्तन (Women’s Movements and Change)

महिला आंदोलन और सामाजिक परिवर्तन पर नारीवादी बहस ने समाज में महिलाओं की स्थिति, उनके अधिकारों और समानता के मुद्दों पर गहन चर्चा की है। इन आंदोलनों ने न केवल महिलाओं के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं, बल्कि व्यापक सामाजिक संरचनाओं को भी प्रभावित किया है।

 महिला आंदोलन: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

19वीं सदी में भारत में महिला आंदोलनों की शुरुआत सामाजिक सुधारों के साथ हुई। सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा पुनर्विवाह जैसे मुद्दों पर सुधारकों ने ध्यान केंद्रित किया। राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसे समाज सुधारकों ने इन कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष किया। प्रार्थना समाज, आर्य समाज जैसे संगठनों ने महिला शिक्षा और अधिकारों के लिए कार्य किया। 
20वीं सदी में महिला आंदोलनों ने राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों की मांग की। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई, जिससे उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ। स्वतंत्रता के बाद, महिलाओं के अधिकारों के लिए संवैधानिक प्रावधान किए गए, लेकिन जमीनी हकीकत में अंतर बना रहा।
नारीवादी दृष्टिकोण ने समाज में महिलाओं की भूमिका, उनके अधिकारों और लैंगिक समानता पर गहन विचार-विमर्श किया है। इन आंदोलनों ने महिलाओं के सशक्तिकरण, शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीतिक भागीदारी, और आर्थिक स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है। इस संदर्भ में, विभिन्न महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों और आंदोलनों ने समय-समय पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

  भारतीय नारीवादी आंदोलनों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

1. प्रारंभिक सुधारवादी आंदोलन (19वीं सदी)

19वीं सदी में, भारत में सामाजिक सुधारकों ने महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए कई प्रयास किए। इन आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य सती प्रथा, बाल विवाह, और विधवा पुनर्विवाह जैसे मुद्दों को संबोधित करना था।

प्रमुख व्यक्तित्व:

- राजा राममोहन राय (1772-1833): उन्होंने सती प्रथा के खिलाफ संघर्ष किया, जिसके परिणामस्वरूप 1829 में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया।
- ईश्वरचंद्र विद्यासागर (1820-1891): उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में आंदोलन किया, जिसके परिणामस्वरूप 1856 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित हुआ।

प्रमुख आंदोलन:

- सती प्रथा उन्मूलन (1829): राजा राममोहन राय के प्रयासों से सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा।
- विधवा पुनर्विवाह अधिनियम (1856): ईश्वरचंद्र विद्यासागर के प्रयासों से यह अधिनियम पारित हुआ।

 2. स्वतंत्रता संग्राम और महिला सहभागिता (1916-1947)

इस अवधि में, महिलाओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाई।

प्रमुख व्यक्तित्व:

- एनी बेसेंट (1847-1933): होम रूल लीग की स्थापना की और महिलाओं को राजनीतिक रूप से सक्रिय होने के लिए प्रेरित किया।
- सरोजिनी नायडू (1879-1949): भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष बनीं और महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।

प्रमुख आंदोलन:

- अखिल भारतीय महिला सम्मेलन (1927): महिलाओं की शिक्षा और सामाजिक सुधार के लिए यह सम्मेलन आयोजित किया गया।

 3. स्वतंत्रता के बाद का काल (1947-1980)

स्वतंत्रता के बाद, महिलाओं के अधिकारों के लिए कानूनी प्रावधान किए गए, लेकिन सामाजिक स्तर पर चुनौतियाँ बनी रहीं।

प्रमुख व्यक्तित्व:

- कमलादेवी चट्टोपाध्याय (1903-1988): हस्तशिल्प और सहकारिता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- अरुणा आसफ अली (1909-1996): 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भागीदारी और बाद में महिलाओं के अधिकारों के लिए कार्य किया।

प्रमुख आंदोलन:

- हिंदू कोड बिल (1955-1956): डॉ. भीमराव अंबेडकर के प्रयासों से हिंदू महिलाओं के लिए संपत्ति के अधिकार और तलाक के प्रावधान शामिल किए गए।

4. समकालीन नारीवादी आंदोलन (1980-वर्तमान)

इस अवधि में, महिलाओं के खिलाफ हिंसा, कार्यस्थल पर भेदभाव, और लैंगिक समानता जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया।

प्रमुख व्यक्तित्व:

- मेधा पाटकर (जन्म 1954): नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता, जिन्होंने विस्थापित महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
- मृणाल गोरे (1928-2012): सामाजिक कार्यकर्ता, जिन्होंने महिलाओं के स्वास्थ्य और परिवार नियोजन के मुद्दों पर काम किया।

प्रमुख आंदोलन:

- दहेज विरोधी आंदोलन (1980 के दशक): दहेज प्रथा के खिलाफ व्यापक जनजागरण और कानूनी सुधार की मांग।
- मीटू आंदोलन (2018): कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ वैश्विक आंदोलन, जिसमें भारतीय महिलाओं ने भी सक्रिय भागीदारी की।

5. स्थानीय महिला आंदोलनों की भूमिका (Role of Grassroots Movements in Gender-Sensitive Laws)

  • स्थानीय महिला संगठन और आंदोलन समाज में लैंगिक असमानता के मुद्दों को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • घरेलू हिंसा, दहेज, बाल विवाह, यौन उत्पीड़न जैसे विषयों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए स्थानीय आंदोलनों ने सरकार को नीतियाँ बनाने के लिए मजबूर किया।

उदाहरण:

  • "गुलाबी गैंग" (Gulabi Gang, उत्तर प्रदेश) – यह संगठन घरेलू हिंसा और महिला उत्पीड़न के खिलाफ काम करता है।
  • SEWA" (Self-Employed Women’s Association) – महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण प्रदान करता है।
  • भारत में "निर्भया आंदोलन" (2012) – इसने महिला सुरक्षा कानूनों में सुधार की मांग की।
इन आंदोलनों और व्यक्तित्वों ने भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। नारीवादी दृष्टिकोण ने विकास और परिवर्तन के माध्यम से महिलाओं के सशक्तिकरण, शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीतिक भागीदारी, और आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा दिया है। 

नारीवादी दृष्टिकोण: विकास और परिवर्तन

नारीवादी आंदोलनों ने समाज में महिलाओं की भूमिका, उनके अधिकारों और लैंगिक समानता पर गहन विचार-विमर्श किया है। इन आंदोलनों ने महिलाओं के सशक्तिकरण, शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीतिक भागीदारी, और आर्थिक स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।
  • महिला सशक्तिकरण: नारीवादी आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाना है। इसके लिए उन्होंने महिलाओं के अधिकारों की वकालत की और पितृसत्तात्मक समाज की संरचनाओं को चुनौती दी। इन आंदोलनों ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने, निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने, और समाज में समान भागीदारी के लिए प्रेरित किया।
  • शिक्षा: शिक्षा के क्षेत्र में नारीवादी आंदोलनों ने लड़कियों और महिलाओं के लिए शिक्षा के अवसर बढ़ाने पर जोर दिया। उन्होंने महिला शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया और इसके लिए नीतिगत सुधारों की मांग की। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, महिलाओं की साक्षरता दर में वृद्धि हुई और उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में करियर बनाने के अवसर मिले।
  • स्वास्थ्य: स्वास्थ्य के क्षेत्र में, नारीवादी आंदोलनों ने महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य, मातृ मृत्यु दर, और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने महिलाओं के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए अभियान चलाए और सरकारों से नीतिगत हस्तक्षेप की मांग की।
  • राजनीतिक भागीदारी: राजनीतिक क्षेत्र में, नारीवादी आंदोलनों ने महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने महिलाओं के लिए आरक्षण, राजनीतिक दलों में उनकी भागीदारी, और निर्णय लेने वाली संस्थाओं में उनकी उपस्थिति बढ़ाने के लिए अभियान चलाए। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, कई देशों में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि हुई है।
  • आर्थिक स्वतंत्रता: आर्थिक क्षेत्र में, नारीवादी आंदोलनों ने महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता के लिए कार्य किया। उन्होंने समान वेतन, कार्यस्थल में भेदभाव के खिलाफ कानून, और महिलाओं के लिए उद्यमिता के अवसर बढ़ाने के लिए अभियान चलाए। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ और उन्हें आर्थिक निर्णयों में अधिक स्वतंत्रता मिली।
इन सभी प्रयासों ने समाज में महिलाओं की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार किया है और लैंगिक समानता की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है। हालांकि, अभी भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिनका समाधान करने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है। 

विकास के प्रति नारीवादी दृष्टिकोण

विकास के संदर्भ में नारीवादी दृष्टिकोण ने महिलाओं की भागीदारी और उनके अधिकारों को प्रमुखता दी है। महिला सशक्तिकरण के लिए नीतियों का निर्माण, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच, और आर्थिक स्वतंत्रता के लिए अवसर प्रदान करना इस दृष्टिकोण के मुख्य बिंदु हैं।

सामाजिक परिवर्तन में महिला आंदोलनों की भूमिका

महिला आंदोलनों ने सामाजिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन आंदोलनों ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा, कार्यस्थल पर भेदभाव, और लैंगिक असमानता जैसे मुद्दों को उजागर किया है। इसके परिणामस्वरूप, कई कानूनी और सामाजिक सुधार संभव हो सके हैं।
महिला आंदोलन और सामाजिक परिवर्तन पर नारीवादी बहस ने समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन आंदोलनों ने न केवल महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया है, बल्कि समाज की संरचनात्मक असमानताओं को भी चुनौती दी है, जिससे एक समतामूलक समाज की स्थापना की दिशा में प्रगति हुई है। 

निष्कर्ष:

  • महिलाओं के विकास और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए WID से GAD तक का बदलाव महत्वपूर्ण रहा है।
  • वैश्वीकरण और नवउदारवाद ने महिलाओं के लिए नए अवसर पैदा किए लेकिन उनके शोषण को भी बढ़ाया।
  • महिला आंदोलन और नीतिगत परिवर्तन लैंगिक समानता की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • स्थानीय महिला आंदोलनों ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार पर दबाव बनाया है।
भविष्य की दिशा: महिलाओं के लिए समान वेतन, कानूनी सुरक्षा, भूमि अधिकार, और राजनीतिक भागीदारी को मजबूत करने की आवश्यकता है।

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