M. A. 2nd Sem, KU-Women's Studies, Paper-3, Unit-I Class Notes with espescial focus on Uniform Civil Code from Feminist Perspective

By

Dr. Farzeen Bano

Paper III – महिला,समाज और सामाजिक संरचना, 

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I: परिवार पर नारीवादी बहस: विवाह और तलाक की संस्था, प्रजनन की राजनीति

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I.परिवार पर नारीवादी बहस

"परिवार" की अवधारणा के इर्द-गिर्द नारीवादी बहस वास्तव में 1960 के दशक के अंत और 1970 के दशक की शुरुआत में नारीवाद की दूसरी लहर के दौरान शुरू हुई, जब कार्यकर्ताओं ने गंभीरता से जांच करना शुरू किया कि कैसे पारंपरिक पारिवारिक संरचनाएं अक्सर महिलाओं के अवसरों को सीमित करती हैं और घर के भीतर लैंगिक असमानता को कायम रखती हैं; परिवार को लिंगों के बीच शक्ति असंतुलन के प्रमुख स्थल के रूप में उजागर किया।
नारीवादियों ने लंबे समय से परिवार की भूमिका पर बहस की है, जो लिंग भूमिकाओं, शक्ति संबंधों और सामाजिक मानदंडों को आकार देता है। उनकी चर्चाएँ दो मुख्य क्षेत्रों पर केंद्रित हैं: विवाह और तलाक तथा प्रजनन की राजनीति। ये बहसें पारंपरिक पारिवारिक संरचनाओं के प्रभावों को महिलाओं के अधिकारों, स्वायत्तता और कल्याण के संदर्भ में जांचतीप्रजन

विवाह और तलाक की संस्थाएँ

-विवाह: एक पितृसत्तात्मक संस्था बनाम विकसित होती साझेदारी

  • पारंपरिक विवाह में पुरुषों का प्रभुत्व होता है और महिलाओं को अधीनस्थ भूमिका निभानी पड़ती है। 
  • आधुनिक समय में, विवाह को समान भागीदारी वाली संस्था के रूप में देखा जाने लगा है।

- पारंपरिक विवाह मानकों की नारीवादी आलोचना

  •  विवाह में महिलाओं की स्वतंत्रता और निर्णय लेने की शक्ति सीमित होती है। 
  • घरेलू श्रम का कोई आर्थिक मूल्य नहीं माना जाता। 
  • सामाजिक और कानूनी संरचनाएँ अक्सर महिलाओं के अधिकारों को कमजोर करती हैं।

- तलाक: महिलाओं की स्वायत्तता का साधन और तलाक के बाद की चुनौतियाँ

  • तलाक महिलाओं को विषम परिस्थितियों से बाहर निकलने का अवसर देता है। 
  • लेकिन आर्थिक असुरक्षा, सामाजिक कलंक और बाल संरक्षण की समस्याएँ बनी रहती हैं।

- विवाह और तलाक से संबंधित कानून

  • हिंदू विवाह अधिनियम (1955) – हिंदू विवाह और तलाक को नियंत्रित करता है। 
  • मुस्लिम पर्सनल लॉ – शरीयत आधारित नियम, तीन तलाक (अब प्रतिबंधित)। 
  • विशेष विवाह अधिनियम (1954) – धर्मनिरपेक्ष विवाह को कानूनी मान्यता देता है।

प्रजनन की राजनीति

- महिलाओं के प्रजनन अधिकारों पर नियंत्रण

  • पारंपरिक समाज महिलाओं की प्रजनन क्षमता को नियंत्रित करने की कोशिश करता है। 
  • गर्भनिरोधक, गर्भपात और मातृत्व पर महिलाओं का पूर्ण अधिकार होना चाहिए।

- गर्भनिरोधक, गर्भपात और सरोगेसी पर नारीवादी दृष्टिकोण

  • गर्भनिरोधक के उपयोग से महिलाओं को अपने शरीर पर नियंत्रण मिलता है। 
  • गर्भपात को कानूनी अधिकार के रूप में मान्यता देने की माँग की जाती है। 
  • सरोगेसी को लेकर नैतिक और आर्थिक शोषण की बहस जारी है।

-जनसंख्या नियंत्रण संबंधी सरकारी नीतियाँ और उनका महिलाओं पर प्रभाव

  • जबरन नसबंदी और दो-बच्चे की नीति महिलाओं के अधिकारों को प्रभावित करती है। 
  • महिलाओं पर अधिक प्रजनन संबंधी जिम्मेदारियों का बोझ डाला जाता है।

- जाति, वर्ग और धर्म का प्रजनन की राजनीति में प्रभाव

  • उच्च जातियाँ निचली जातियों की प्रजनन क्षमता को नियंत्रित करने की कोशिश करती हैं। 
  • गरीब महिलाओं को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएँ कम मिलती हैं। 
  • धार्मिक नियम गर्भपात और गर्भनिरोधक तक महिलाओं की पहुँच को सीमित करते हैं।

निष्कर्ष

नारीवादी बहसें पारिवारिक संरचनाओं को चुनौती देती हैं और महिलाओं के अधिकारों, स्वायत्तता और समानता की वकालत करती हैं। विवाह, तलाक और प्रजनन अधिकारों को लेकर कानूनी और सामाजिक सुधार लगातार हो रहे हैं।

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---उपयुक्त लिखे विषय को विस्तार से यहाँ समझेंगे--

नारीवादियों ने लिंग भूमिकाओं, शक्ति गतिशीलता और सामाजिक मानदंडों को आकार देने में परिवार की भूमिका पर लंबे समय से बहस की है। उनकी चर्चा दो प्रमुख क्षेत्रों पर केंद्रित है: विवाह और तलाक और प्रजनन की राजनीति। ये बहसें इस बात का पता लगाती हैं कि पारंपरिक पारिवारिक संरचनाएँ महिलाओं के अधिकारों, स्वायत्तता और कल्याण को कैसे प्रभावित करती हैं।

1. विवाह और तलाक की संस्थाएँ

विवाह को ऐतिहासिक रूप से एक सामाजिक अनुबंध के रूप में देखा जाता रहा है जो लिंग भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को नियंत्रित करता है। नारीवादी विवाह की आलोचना एक पितृसत्तात्मक संस्था होने के लिए करते हैं जो अक्सर महिलाओं की स्वतंत्रता को सीमित करती है और पुरुष वर्चस्व को मजबूत करती है। हालाँकि, आधुनिक दृष्टिकोण समानता पर आधारित साझेदारी के रूप में विवाह की विकसित प्रकृति को भी स्वीकार करते हैं।

विवाह एक पितृसत्तात्मक संस्था बनाम एक विकसित साझेदारी

- पितृसत्तात्मक संस्था परिप्रेक्ष्य:

- पारंपरिक विवाह लैंगिक भूमिकाओं को लागू करता है, जहाँ महिलाओं से देखभाल करने की अपेक्षा की जाती है, जबकि पुरुष कमाने वाले होते हैं।
- महिलाओं को अक्सर निर्णय लेने, वित्तीय स्वतंत्रता और गतिशीलता में प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है।
- दहेज, अरेंज मैरिज और महिलाओं की कामुकता पर नियंत्रण जैसी ऐतिहासिक प्रथाएँ पुरुष अधिकार को मजबूत करती हैं।
- उदाहरण: हिंदू विवाहों में "कन्यादान" की प्रथा एक बेटी को देने का प्रतीक है, जो पितृसत्तात्मक मानदंडों को दर्शाती है।

- विकसित साझेदारी परिप्रेक्ष्य:

- नारीवादी आंदोलनों ने विवाह मानदंडों में बदलाव किए हैं, जिसमें समानता और आपसी सम्मान पर अधिक जोर दिया गया है।
- कई समाजों में, महिलाओं को अब संपत्ति, वित्तीय स्वतंत्रता और साझा घरेलू जिम्मेदारियों के कानूनी अधिकार हैं।
- समलैंगिक विवाह और बिना विवाह के सहवास विवाह के पारंपरिक विचारों को चुनौती देते हैं।
- - उदाहरण: स्वीडन और नॉर्वे जैसे देश लैंगिक समानता वाले पालन-पोषण और साझा घरेलू श्रम पर जोर देते हैं।

पारंपरिक विवाह मानदंडों की नारीवादी आलोचना

- महिलाओं की स्वायत्तता का अभाव:

- ऐतिहासिक रूप से, महिलाओं को अपने साथी चुनने में बहुत कम अधिकार प्राप्त थे।
- विवाह का अर्थ अक्सर महिला के शरीर, श्रम और प्रजनन अधिकारों पर कानूनी और सामाजिक नियंत्रण होता था।
- उदाहरण: दक्षिण एशिया में बाल विवाह लड़कियों की शिक्षा और आर्थिक अवसरों तक पहुँच को सीमित करता है।

- आर्थिक निर्भरता:

- महिलाओं के अवैतनिक घरेलू श्रम से परिवार को लाभ होता है, लेकिन आर्थिक दृष्टि से इसे मान्यता नहीं दी जाती है।
- कई महिलाएँ घरेलू जिम्मेदारियों के कारण शादी के बाद नौकरी छोड़ देती हैं, जिससे वे आर्थिक रूप से पति पर निर्भर हो जाती हैं।
- उदाहरण: भारत में, कई विवाहित महिलाओं के पास स्वतंत्र वित्तीय संपत्ति नहीं होती है, जिससे तलाक के बाद आर्थिक रूप से कमज़ोर हो जाती हैं।

 - हिंसा और वैवाहिक बलात्कार:

- कई कानूनी प्रणालियाँ वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं मानती हैं, जिससे यह धारणा मजबूत होती है कि पतियों का अपनी पत्नियों के शरीर पर नियंत्रण होता है। 
- उदाहरण: भारत सहित कुछ देशों में वैवाहिक बलात्कार को अभी भी अपराध नहीं माना जाता है। 

- तलाक के इर्द-गिर्द कानूनी और सामाजिक कलंक:

- तलाक चाहने वाली महिलाओं को अक्सर सामाजिक आलोचना, आर्थिक चुनौतियों और बच्चे की कस्टडी खोने का सामना करना पड़ता है। 
- सामाजिक दबाव और पारिवारिक अपेक्षाओं के कारण रूढ़िवादी समाजों में महिलाओं के लिए तलाक लेना कठिन होता है। 
- उदाहरण: दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व में कई महिलाएँ तलाक के बाद गुजारा भत्ता और बच्चे की देखभाल के लिए संघर्ष करती हैं। 

महिलाओं की स्वायत्तता के साधन के रूप में तलाक और तलाक के बाद की चुनौतियाँ

- तलाक के ज़रिए स्वायत्तता: 

- तलाक महिलाओं को अपमानजनक, प्रतिबंधात्मक या दुखी विवाह छोड़ने की अनुमति देता है। 
- तलाक के बाद महिलाओं को अपने वित्तीय और व्यक्तिगत जीवन पर नियंत्रण मिलता है। 
 - उदाहरण: पश्चिमी देशों में बिना किसी गलती के तलाक कानून महिलाओं को गलत काम साबित किए बिना विवाह से बाहर निकलने की अनुमति देता है।

- तलाक के बाद की चुनौतियाँ:

- आर्थिक कठिनाई: कई तलाकशुदा महिलाएँ वित्तीय सुरक्षा के साथ संघर्ष करती हैं, खासकर अगर वे गृहिणी थीं।
- सामाजिक कलंक: तलाकशुदा महिलाओं को अक्सर आवास, पुनर्विवाह और परिवार की स्वीकृति में भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
- child coustody की लड़ाई: कानूनी व्यवस्था अक्सर पिताओं का पक्ष लेती है या महिलाओं से वित्तीय रूप से प्रदान करने की उनकी क्षमता साबित करने की अपेक्षा करती है।
- उदाहरण: भारत में, तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को ऐतिहासिक रूप से अपर्याप्त गुजारा भत्ता के साथ संघर्ष करना पड़ा है, जिसके कारण मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 जैसे सुधार हुए हैं।

विवाह और तलाक को नियंत्रित करने वाले कानून

- भारत में विवाह और तलाक से संबंधित कानून विभिन्न धर्मों के अनुसार अलग-अलग हैं, जो महिलाओं के अधिकारों और समानता पर विविध प्रभाव डालते हैं। विवाह और तलाक को नियंत्रित करने वाले प्रमुख कानून:
1. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955: यह अधिनियम हिंदू, सिख, जैन, और बौद्ध धर्म के अनुयायियों पर लागू होता है।समें तलाक के लिए परित्याग, क्रूरता, व्यभिचार आदि आधार शामिल हैं।हिला अधिकारों की दृष्टि से, यह अधिनियम महिलाओं को तलाक और भरण-पोषण के लिए कानूनी उपाय प्रदान करता है।
2. मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम, 1939: मुस्लिम महिलाओं को इस अधिनियम के तहत तलाक के लिए कानूनी अधिकार प्राप्त हैं।ालांकि, कुछ प्रथाएं, जैसे बहुविवाह, महिलाओं के अधिकारों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं।
परन्तु भारत में तीन तलाक का उन्मूलन (2019) विवाह में मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने वाला एक महत्वपूर्ण कानूनी सुधार था।
3. ईसाई तलाक अधिनियम, 1869: यह अधिनियम ईसाई समुदाय के लिए लागू होता है और इसमें तलाक के लिए विभिन्न आधार प्रदान करता है।हलांकि, कुछ प्रावधान महिलाओं के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं, जैसे लंबी कानूनी प्रक्रियाएं।
4. पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936: पारसी समुदाय के लिए यह अधिनियम विवाह और तलाक के प्रावधानों को निर्दिष्ट करता है।

समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) और उत्तराखंड में इसका कार्यान्वयन:

समान नागरिक संहिता का उद्देश्य सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, और गोद लेने जैसे मामलों में एक समान कानून लागू करना है, जो धर्म या समुदाय के आधार पर भेदभाव को समाप्त करता है।
हाल ही में, उत्तराखंड स्वतंत्रता के बाद समान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला राज्य बन गया है।समान नागरिक संहिता के तहत, राज्य के सभी निवासियों के लिए विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेना, और उत्तराधिकार से संबंधित एक समान कानून होगा, जो धर्म और समुदाय से परे होगा।

नारीवादी दृष्टिकोण से समान नागरिक संहिता:

नारीवादी दृष्टिकोण से, समान नागरिक संहिता महिलाओं के लिए कई लाभ प्रदान कर सकती है:
- समानता की स्थापना: वभिन्न धार्मिक कानूनों में महिलाओं के प्रति असमान प्रावधान हो सकते हैं। समान नागरिक संहिता इन असमानताओं को समाप्त कर सकती है।
- महिला अधिकारों की सुरक्षा:  वरतमान कानून महिलाओं के संपत्ति अधिकार, भरण-पोषण, और तलाक के मामलों में बेहतर सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं।
- कानूनी जटिलताओं में कमी: वभिन्न धार्मिक कानूनों के स्थान पर एक समान कानून होने से कानूनी प्रक्रियाएं सरल हो सकती हैं, जिससे महिलाओं को न्याय प्राप्त करने में आसानी होगी।हांलांकि, कुछ नारीवादी समूहों ने चिंता व्यक्त की है कि समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन में सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान सुनिश्चित किया जाना चाहिए।सके अलावा, यह भी महत्वपूर्ण है कि संहिता का निर्माण और कार्यान्वयन महिलाओं के अधिकारों और हितों को केंद्र में रखकर किया जाए।
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता का कार्यान्वयन एक महत्वपूर्ण कदम है, जो महिलाओं के अधिकारों और समानता की दिशा में सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। हांलांकि, इसके प्रभावों का मूल्यांकन समय के साथ किया जाएगा, और यह सुनिश्चित करना आवश्यक होगा कि यह सभी समुदायों की महिलाओं के लिए न्यायसंगत और लाभकारी हो।

2. प्रजनन की राजनीति

प्रजनन अधिकार नारीवादी बहसों के लिए केंद्रीय हैं क्योंकि वे महिलाओं की शारीरिक स्वायत्तता, स्वास्थ्य और स्वतंत्रता को निर्धारित करते हैं। नारीवादियों का तर्क है कि प्रजनन को नियंत्रित करना महिलाओं के जीवन को नियंत्रित करने का एक साधन है।

महिलाओं के प्रजनन अधिकारों पर नियंत्रण

- ऐतिहासिक नियंत्रण:

- पितृसत्तात्मक समाजों ने तय किया है कि महिलाएं कब, कैसे और किन परिस्थितियों में बच्चे पैदा कर सकती हैं। 
- उदाहरण: जबरन नसबंदी अभियान ने दलितों और अफ्रीकी अमेरिकियों जैसे हाशिए के समुदायों को निशाना बनाया। 

- प्रजनन स्वायत्तता:

- महिलाओं को यह तय करने का अधिकार होना चाहिए कि उन्हें कब, कैसे और कैसे बच्चे पैदा करने हैं। 
- जन्म नियंत्रण, गर्भपात और प्रजनन उपचार तक पहुँच सभी के लिए उपलब्ध होनी चाहिए। 
- उदाहरण: अमेरिका में रो बनाम वेड मामले (1973) ने गर्भपात को वैध कर दिया, लेकिन हाल ही में हुए उलटफेर प्रजनन अधिकारों के लिए चल रहे संघर्षों को उजागर करते हैं। 

 गर्भनिरोधक, गर्भपात और सरोगेसी पर नारीवादी दृष्टिकोण

- गर्भनिरोधक:

- नारीवादी महिलाओं को अपने प्रजनन विकल्पों को नियंत्रित करने की अनुमति देने के लिए गर्भनिरोधकों तक सार्वभौमिक पहुँच की वकालत करती हैं। 
- उदाहरण: गर्भनिरोधक गोलियों ने 1960 के दशक में महिलाओं की स्वतंत्रता में क्रांति ला दी, जिससे उन्हें करियर और शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति मिली। 

- गर्भपात:

- प्रो-चॉइस नारीवादियों का तर्क है कि गर्भपात एक मौलिक अधिकार है और इसे कानूनी रूप से संरक्षित किया जाना चाहिए। 
- प्रो-लाइफ तर्क, जो अक्सर धर्म से प्रभावित होते हैं, गर्भपात तक पहुँच को प्रतिबंधित करते हैं। 
- उदाहरण: आयरलैंड में, 2018 तक गर्भपात अवैध था, जिससे महिलाओं को प्रक्रियाओं के लिए यूके की यात्रा करने के लिए मजबूर होना पड़ता था। 

- सरोगेसी:

- वाणिज्यिक सरोगेसी और गरीब महिलाओं के शोषण के बारे में नैतिक बहस मौजूद है। 
- उदाहरण: भारत वाणिज्यिक सरोगेसी का एक प्रमुख केंद्र था जब तक कि शोषण को रोकने के लिए 2015 में विदेशियों के लिए इसे प्रतिबंधित नहीं कर दिया गया। 

जनसंख्या नियंत्रण पर सरकारी नीतियाँ और महिलाओं पर उनका प्रभाव

- जनसंख्या नियंत्रण के लिए बलपूर्वक उपाय:

- कई सरकारों ने महिलाओं को लक्षित करते हुए नसबंदी, एक-बच्चा नीतियाँ या कम बच्चों के लिए प्रोत्साहन लागू किए हैं।
- उदाहरण: चीन की एक-बच्चा नीति (1979-2015) के कारण जबरन गर्भपात और कन्या भ्रूण हत्या हुई।

- प्रसव-समर्थक नीतियाँ:

- कुछ देश घटती जनसंख्या के कारण बच्चे पैदा करने को प्रोत्साहित करते हैं, जिससे महिलाओं के करियर विकल्प और वित्तीय स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
- उदाहरण: हंगरी महिलाओं को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करता है, जिससे पारंपरिक पारिवारिक भूमिकाएँ मजबूत होती हैं।

- प्रजनन राजनीति में जाति, वर्ग और धर्म का अंतर्संबंध

- जाति-आधारित नियंत्रण:

- शुद्धता और पदानुक्रम बनाए रखने के लिए उच्च-जाति के मानदंड अक्सर निम्न-जाति की महिलाओं के प्रजनन विकल्पों को नियंत्रित करते हैं।
 - उदाहरण: भारत में दलित महिलाओं को ऐतिहासिक रूप से जबरन नसबंदी के अधीन किया गया है।

- वर्ग और आर्थिक बाधाएँ:

- गरीब महिलाओं को अक्सर गुणवत्तापूर्ण मातृ स्वास्थ्य सेवा, गर्भनिरोधक और गर्भपात सेवाओं तक पहुँच की कमी होती है।
- उदाहरण: वैश्विक दक्षिण में कई कामकाजी वर्ग की महिलाएँ कानूनी पहुँच की कमी के कारण असुरक्षित गर्भपात विधियों पर निर्भर हैं।

-धार्मिक प्रतिबंध:

- कई धर्म गर्भनिरोधक और गर्भपात का विरोध करते हैं, जिससे सरकारी नीतियाँ प्रभावित होती हैं।
- उदाहरण: पोलैंड जैसे कैथोलिक-बहुल देशों में गर्भपात के सख्त कानून हैं।

निष्कर्ष

- पारिवारिक संरचनाओं पर नारीवादी बहस पारंपरिक मानदंडों को चुनौती देती है और महिलाओं के अधिकारों, स्वायत्तता और समानता की वकालत करती है।
- कानूनी और सामाजिक सुधार विवाह, तलाक और प्रजनन अधिकारों के विकास को आकार देते रहते हैं।
- अंतर्विषयक दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करते हैं कि इन चर्चाओं में जाति, वर्ग और धर्म के पार की विविध आवाज़ें शामिल हों।

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परिवार पर नारीवादी बहस – विभिन्न नारीवादी दृष्टिकोणों  अथवा नारीवादी सिद्धांतों के अनुसार

परिवार नारीवादी विचारधारा में बहस का एक प्रमुख विषय रहा है। विभिन्न नारीवादी दृष्टिकोणों ने परिवार की भूमिका का विश्लेषण किया है कि यह लिंग भूमिकाओं, शक्ति संबंधों और समाज में महिलाओं की स्थिति को कैसे आकार देता है। इस नोट्स में विभिन्न नारीवादी सिद्धांतों के मुख्य बिंदु और वास्तविक उदाहरण दिए गए हैं।  

1. उदारवादी नारीवाद (Liberal Feminism): परिवार में समानता

- मुख्य विचार:  

  उदारवादी नारीवादी मानते हैं कि परिवार को समानता का स्थान होना चाहिए। वे यह तर्क देते हैं कि कानूनी और नीतिगत बदलाव महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता ला सकते हैं।  

- मुख्य बिंदु:  

  • घर के कामकाज का समान वितरण होना चाहिए।  
  • माता-पिता दोनों के लिए संतान पालन अवकाश (Parental Leave) अनिवार्य किया जाना चाहिए।  
  • लड़कियों और लड़कों के लिए समान शिक्षा और रोजगार अवसर होने चाहिए।  

- समर्थक विचारक:  

  •  Betty Friedan– ‘The Feminine Mystique’ (1963) में उन्होंने घरेलू महिलाओं की स्थिति पर चर्चा की।  
  • John Stuart Mill –The Subjection of Women’ (1869) में उन्होंने लिंग समानता का समर्थन किया।  

- वास्तविक उदाहरण: 

  स्वीडन में माता-पिता दोनों को पेड पैरेंटल लीव (Paid Parental Leave) लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है ताकि संतुलित पालन-पोषण हो सके।  

2. कट्टरपंथी नारीवाद (Radical Feminism): परिवार पितृसत्ता का केंद्र 

- मुख्य विचार:

  कट्टरपंथी नारीवादी मानते हैं कि परिवार एक ऐसा सामाजिक ढांचा है जो पुरुषों के प्रभुत्व को बनाए रखता है और महिलाओं को दबाता है।  

- मुख्य बिंदु: 

  • पारंपरिक परिवार संरचना पुरुषों को अधिक लाभ पहुँचाती है।  
  •  घरेलू श्रम (गृहकार्य, बाल पालन) अवैतनिक और कम मूल्यवान होता है।  
  • महिलाओं की आर्थिक निर्भरता उन्हें पुरुषों के नियंत्रण में रखती है।  

- समर्थक विचारक: 

  • Shulamith Firestone – ‘The Dialectic of Sex’ (1970) में उन्होंने जैविक पुनरुत्पत्ति को महिला उत्पीड़न का कारण बताया।  
  • Kate Millett – ‘Sexual Politics’ (1970) में उन्होंने परिवार में लिंग आधारित सत्ता संरचनाओं की आलोचना की।  

- वास्तविक उदाहरण: 

  Arlie Hochschild की “द सेकंड शिफ्ट” (The Second Shift) किताब बताती है कि कैसे कार्यरत महिलाएँ ऑफिस से आने के बाद भी घर के कामों में पुरुषों से अधिक योगदान देती हैं।  

3. मार्क्सवादी नारीवाद (Marxist Feminism): परिवार और पूँजीवाद 

- मुख्य विचार: 

मार्क्सवादी नारीवादियों का मानना ​​है कि परिवार एक दमनकारी संस्था है जो महिलाओं का शोषण करती है और पूंजीवाद और पितृसत्ता को बनाए रखने में मदद करती है।  मार्क्सवादी नारीवादी मानते हैं कि परिवार पूँजीवाद की सेवा करता है क्योंकि यह अवैतनिक घरेलू श्रम को बढ़ावा देता है और कार्यबल (Workforce) के पुनरुत्पादन में मदद करता है।  

- मुख्य बिंदु: 

  • महिलाएँ घर पर मुफ्त श्रम (खाना बनाना, सफाई करना, बच्चों की परवरिश) करती हैं।  
  • पूँजीवाद को इससे फायदा होता है क्योंकि पुरुष कार्यबल को घर पर समर्थन मिलता है।  
  • परिवार संपत्ति के उत्तराधिकार को पुरुष वंश के माध्यम से सुनिश्चित करता है।  

- समर्थक विचारक: 

  • Friedrich Engels – ‘The Origin of the Family, Private Property and the State’ में उन्होंने बताया कि परिवार महिलाओं को संपत्ति से वंचित रखता है।   
  • Margaret Benston– उन्होंने कहा कि महिलाओं का घरेलू श्रम पूँजीवाद को समर्थन देता है।  

- वास्तविक उदाहरण:

  भारत में कई महिलाएँ विवाह के बाद नौकरी छोड़ देती हैं और घरेलू जिम्मेदारियों के कारण आर्थिक रूप से निर्भर हो जाती हैं।  

4. समाजवादी नारीवाद (Socialist Feminism): वर्ग और लिंग का मेल 

- मुख्य विचार: 

  समाजवादी नारीवादी मानते हैं कि पूँजीवाद और पितृसत्ता दोनों मिलकर महिलाओं का शोषण करते हैं।  

- मुख्य बिंदु: 

  • महिलाओं का शोषण उनके आर्थिक निर्भरता और लिंग भूमिकाओं के कारण होता है।  
  • मुफ्त बाल देखभाल, समान वेतन, सरकारी सहयोग जैसी नीतियाँ आवश्यक हैं।  

- समर्थक विचारक: 

  - Sheila Rowbotham– "Hidden from History: 300 Years of Women's Oppression and the Fight Against It" (1973), उन्होंने बताया कि महिलाओं की श्रम शक्ति का दोहरा शोषण होता है।  ऑफिस का काम और घर का काम दोनों। Rowbotham का सिद्धांत बताता है कि महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता तभी संभव होगी जब घर और कार्यस्थल दोनों स्थानों पर समानता स्थापित होगी। उन्होंने राज्य द्वारा बाल देखभाल सुविधाएँ, समान वेतन और घरेलू कार्यों का सामाजिक पुनर्मूल्यांकन करने की जरूरत पर बल दिया।
  - Juliet Mitchell – महिलाओं के शोषण को खत्म करने के लिए सामाजिक और आर्थिक बदलाव की जरूरत बताई।  

- वास्तविक उदाहरण:  

  नॉर्वे सरकार द्वारा सब्सिडी वाले डे-केयर सेंटर (Subsidized Childcare) उपलब्ध कराए जाते हैं जिससे महिलाएँ घर और काम में संतुलन बना सकें।  

5. अश्वेत और अंतर्विरोधी नारीवाद (Black & Intersectional Feminism): विविध पारिवारिक अनुभव  

अश्वेत और अंतर्विरोधी नारीवाद (Black & Intersectional Feminism) उन अनुभवों को केंद्र में रखता है जो पारंपरिक पश्चिमी नारीवादी आंदोलनों द्वारा अक्सर अनदेखे कर दिए गए हैं। यह दृष्टिकोण बताता है कि महिलाओं का उत्पीड़न सिर्फ लिंग के कारण नहीं होता, बल्कि जाति (Race), वर्ग (Class), धर्म (Religion), और अन्य सामाजिक संरचनाओं के कारण भी भिन्न होता है।  

मुख्य विचार:  

1. सभी महिलाओं का उत्पीड़न समान नहीं होता।

  • गोरी महिलाएँ और रंग की महिलाएँ (Women of Color) समाज में अलग-अलग चुनौतियों का सामना करती हैं।  
  • उदाहरण के लिए, अमेरिका में अश्वेत महिलाओं को न केवल पितृसत्ता (Patriarchy) बल्कि नस्लवाद (Racism) का भी सामना करना पड़ता है।  

2. परिवार महिलाओं के लिए सहायक भी हो सकते हैं और दमनकारी भी।  

  • कुछ परिवार महिलाओं को सशक्त बनाते हैं और समर्थन देते हैं। 
  • कुछ परिवारों में पारंपरिक लिंग भूमिकाएँ इतनी मजबूत होती हैं कि वे महिलाओं की स्वतंत्रता को सीमित कर देते हैं।  

3. यह दृष्टिकोण विशेष रूप से अकेली माँ, प्रवासी परिवार और नस्लीय भेदभाव पर ध्यान केंद्रित करता है। 

  • समाज में अकेली माताओं को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, खासकर यदि वे अश्वेत, प्रवासी या निम्न वर्ग की हों।  
  • नस्लीय भेदभाव की वजह से महिलाओं को रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं में असमानता झेलनी पड़ती है।  

मुख्य समर्थक विचारक: 

1. Kimberlé Crenshaw (किम्बरली क्रेंशॉ) – Intersectionality की संकल्पना 

  • उन्होंने 1989 में "Intersectionality" शब्द की व्याख्या की। 
  • उनका तर्क था कि महिलाएँ एक ही समय में कई प्रकार के दमन का सामना करती हैं – जैसे लिंग, जाति, वर्ग, धर्म आदि।  

- उदाहरण:  

  •  अश्वेत महिलाएँ केवल महिला होने के कारण ही नहीं बल्कि अश्वेत होने के कारण भी भेदभाव का शिकार होती हैं। 
  • कार्यस्थलों पर अश्वेत महिलाओं को न तो गोरी महिलाओं के समान सुविधाएँ मिलती हैं और न ही अश्वेत पुरुषों के समान सम्मान।  

2. Bell Hooks (बेल हुक्स) – अश्वेत नारीवाद की चर्चा 

  • उन्होंने कहा कि गोरी नारीवादी महिलाएँ अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रही थीं, लेकिन उन्होंने अश्वेत महिलाओं की समस्याओं को पूरी तरह से शामिल नहीं किया।  
  • उनकी किताब "Ain’t I a Woman? Black Women and Feminism" (1981) में यह बताया गया कि अश्वेत महिलाओं को एक साथ नस्लीय भेदभाव और पितृसत्ता का सामना करना पड़ता है।  
  • उन्होंने शिक्षा और नारीवादी आंदोलनों में अधिक समावेशिता (Inclusivity) की जरूरत पर जोर दिया।  

वास्तविक उदाहरण:

1. अमेरिकी अफ्रीकी समुदायों में विस्तारित परिवार (Extended Families) की भूमिका: 

  • पारंपरिक परमाणु परिवार (Nuclear Family) के बजाय, अफ्रीकी अमेरिकी समुदायों में विस्तारित परिवार प्रणाली (Extended Family System) प्रचलित है।   
  • दादी-दादा, चाचा-चाची, और पड़ोसी मिलकर बच्चों की देखभाल करते हैं, जिससे अकेली माताओं को कार्य और परिवार संतुलित करने में मदद मिलती है। 
  • यह पितृसत्तात्मक समाज की तुलना में महिलाओं को अधिक सामुदायिक समर्थन देता है।  

2. प्रवासी महिलाएँ और उनकी समस्याएँ:

  • कई देशों में प्रवासी महिलाएँ न केवल लैंगिक भेदभाव बल्कि नस्लीय भेदभाव का भी सामना करती हैं। 
  • उदाहरण के लिए, मध्य पूर्व में घरेलू कामगार (Migrant Domestic Workers) ज्यादातर दक्षिण एशियाई और अफ्रीकी महिलाएँ होती हैं, जिन्हें निम्न वेतन, शोषण, और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।  

3. अकेली अश्वेत माताओं के लिए संघर्ष: 

  • अमेरिका में अश्वेत महिलाओं के अकेले माता बनने की दर अधिक है, और उन्हें न केवल लिंग भेदभाव बल्कि आर्थिक असमानता और सामाजिक पूर्वाग्रह का भी सामना करना पड़ता है। 
  • सरकार की नीतियाँ और कल्याणकारी योजनाएँ अक्सर उनकी जरूरतों को नजरअंदाज कर देती हैं  

निष्कर्ष:

अश्वेत और अंतर्विरोधी नारीवाद मुख्य रूप से इस विचार पर जोर देता है कि सभी महिलाएँ एक समान अनुभव नहीं रखतीं। विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और नस्लीय परिस्थितियाँ महिलाओं के जीवन को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करती हैं। इस दृष्टिकोण का महत्व इसलिए है क्योंकि यह अधिक समावेशी नारीवाद (Inclusive Feminism) की बात करता है और समाज की व्यापक संरचनाओं में बदलाव की मांग करता है।

6. उत्तरआधुनिक नारीवाद (Postmodern Feminism): परिवार एक पसंद  

- मुख्य विचार:  

  उत्तरआधुनिक नारीवाद मानता है कि कोई एक “सहीपारिवारिक संरचना नहीं होती। यह विविध परिवार संरचनाओं का समर्थन करता है।  यह मानता है कि समाज द्वारा बनाई गई परिवार और लिंग की पारंपरिक धारणाएँ समय, संस्कृति और व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर होती हैं। 
उत्तरआधुनिक नारीवाद परिवार की विविधता को स्वीकार करता है और कहता है कि महिलाओं को किसी एक निश्चित सामाजिक संरचना में सीमित नहीं किया जाना चाहिए। यह पितृसत्ता, लिंग बाइनरी (Gender Binary), और परिवार की रूढ़िवादी परिभाषा को चुनौती देता है। 

मुख्य विचार:  

1. कोई एक "सही" पारिवारिक संरचना नहीं होती। 

  • पारंपरिक परिवार (पुरुष, महिला और उनके बच्चे) के अलावा भी कई अन्य प्रकार के परिवार समाज में मौजूद हैं। 
  • LGBTQ+ परिवार, सिंगल-पेरेंट परिवार, विवाह के बिना सह-जीवन (Live-in Relationship) आदि को भी परिवार के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।  

2. लिंग पहचान (Gender Identity) और लैंगिक भूमिकाओं को चुनौती देना।  

  •  समाज ने पुरुष और महिलाओं के लिए अलग-अलग भूमिकाएँ तय की हैं, लेकिन उत्तरआधुनिक नारीवाद इन्हें कृत्रिम (Artificial) मानता है।
  • यह मानता है कि लिंग और लैंगिक भूमिकाएँ समाज द्वारा बनाई गई धारणाएँ (Social Constructs) हैं, जो समय और स्थान के अनुसार बदल सकती हैं।  

3. विवाह और मातृत्व के पारंपरिक मानदंडों पर सवाल उठाना। 

  • विवाह और मातृत्व को महिलाओं की सफलता का एकमात्र मापदंड नहीं माना जाना चाहिए।  
  • महिलाएँ शादी के बिना भी पूर्ण और स्वतंत्र जीवन जी सकती हैं।  

4. विज्ञान और तकनीक से लैंगिक धारणाओं को चुनौती देना। 

  • उत्तरआधुनिक नारीवाद तकनीक और विज्ञान का उपयोग करके पारंपरिक लिंग भूमिकाओं को तोड़ने की बात करता है। 
  • उदाहरण: सहायक प्रजनन तकनीक (Assisted Reproductive Technology - ART) जैसे IVF, सरोगेसी (Surrogacy), और क्लोनिंग पारंपरिक परिवार की अवधारणा को बदल रहे हैं।  

मुख्य समर्थक विचारक:  

1. Judith Butler (जूडिथ बटलर) – लिंग पहचान और सामाजिक संरचना की आलोचना 

  •  उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "Gender Trouble" (1990) में लिंग (Sex) और सामाजिक रूप से बनाए गए लैंगिक पहचान (Gender) में अंतर किया।  
  • उनका मानना था कि लैंगिक पहचान कोई स्थायी चीज नहीं है, बल्कि समाज द्वारा बनाई गई और निरंतर बदली जाने वाली चीज है।  
  • उन्होंने "Gender Performativity" का सिद्धांत दिया, जिसके अनुसार पुरुष और महिला की भूमिकाएँ जन्म से निर्धारित नहीं होतीं, बल्कि समाज और संस्कृति के प्रभाव से बनती हैं। 

2. Donna Haraway (डोना हरावे) – 'A Cyborg Manifesto' में पारंपरिक लिंग धारणाओं को चुनौती  

  •  उन्होंने "A Cyborg Manifesto" (1985) में यह तर्क दिया कि प्रौद्योगिकी (Technology) पारंपरिक लिंग की सीमाओं को तोड़ सकती है
  • उनके अनुसार, आधुनिक तकनीक और कृत्रिम अंगों (Cyborgs) ने "पुरुष" और "महिला" जैसी पारंपरिक पहचानों को अप्रासंगिक बना दिया है। 
  • उन्होंने यह भी कहा कि महिलाओं को बायोलॉजिकल लिंग के आधार पर नहीं, बल्कि उनकी क्षमताओं के आधार पर आंका जाना चाहिए।  

वास्तविक उदाहरण: 

1. LGBTQ+ परिवार और समान विवाह अधिकार:  

  • कई देशों में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जा चुकी है। 
  • LGBTQ+ दंपतियों को बच्चों को गोद लेने और परिवार बनाने की अनुमति है।  
  • यह पारंपरिक परिवार की अवधारणा को चुनौती देता है और परिवार को लिंग-तटस्थ (Gender-Neutral) रूप में देखने का सुझाव देता है।  

2. सिंगल-पेरेंट परिवार (Single Parent Families):

  • आधुनिक समाज में कई महिलाएँ बिना विवाह के भी मातृत्व को अपना रही हैं।   
  • IVF और सरोगेसी (Surrogacy) जैसी तकनीको ने महिलाओं को स्वतंत्र रूप से मातृत्व अपनाने का विकल्प दिया है।  
  • इस प्रकार, "एक संपूर्ण परिवार के लिए माँ और पिता दोनों जरूरी हैं" जैसी पारंपरिक सोच अब बदल रही है।  

3. विवाह और मातृत्व का विकल्प: 

  • पहले समाज में महिलाओं को विवाह और मातृत्व को ही जीवन की सफलता का मापदंड माना जाता था।  
  • उत्तरआधुनिक नारीवाद कहता है कि महिलाओं को यह अधिकार होना चाहिए कि वे विवाह करना चाहती हैं या नहीं। 
  • कई महिलाएँ अब करियर और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्राथमिकता देती हैं और शादी या माँ बनने के दबाव को अस्वीकार करती हैं।  

4. लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship): 

  • पारंपरिक विवाह के बिना सह-जीवन (Live-in Relationship) को कई समाजों में स्वीकृति मिल रही है। 
  • भारत में भी सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को वैध माना है, जो दर्शाता है कि विवाह अब एकमात्र सामाजिक मान्यता प्राप्त संबंध नहीं है।  

5. ट्रांसजेंडर और नॉन-बाइनरी पहचान को मान्यता:  

  • उत्तरआधुनिक नारीवाद कहता है कि लिंग सिर्फ पुरुष और महिला तक सीमित नहीं है, बल्कि ट्रांसजेंडर, नॉन-बाइनरी (Non-Binary), और जेंडर फ्लुइड (Gender-Fluid) पहचानें भी वास्तविक और वैध हैं।  (जेंडरफ्लुइड एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग ऐसे व्यक्ति का वर्णन करने के लिए किया जाता है जिसकी लिंग पहचान निश्चित नहीं होती है और समय के साथ बदल सकती है। यह एक प्रकार की नॉनबाइनरी लिंग पहचान है, जिसका अर्थ है कि यह पुरुष और महिला की पारंपरिक लिंग बाइनरी से बाहर है।) 
  • कई देशों में अब ट्रांसजेंडर विवाह और अधिकारों को कानूनी मान्यता दी गई है। 2019 तक, 28 देश समलैंगिक विवाह को मान्यता देते हैं, वे हैं:  ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, ब्राज़ील, कनाडा, कोलंबिया, डेनमार्क, फ़्रांस, फ़िनलैंड, जर्मनी, आयरलैंड  आदि.

निष्कर्ष: 

उत्तरआधुनिक नारीवाद पारंपरिक परिवार की परिभाषा को तोड़ता है और कहता है कि हर व्यक्ति को अपने परिवार की संरचना चुनने का अधिकार होना चाहिए। यह लिंग, पहचान, विवाह और मातृत्व से जुड़े पुराने विचारों को चुनौती देता है और कहता है कि समाज को व्यक्तिगत पसंद और विविधता को स्वीकार करना चाहिए।  
इस दृष्टिकोण का महत्व इस बात में है कि यह पारंपरिक नारीवादी विचारों से आगे जाकर समाज को अधिक समावेशी (Inclusive) और लिंग-तटस्थ (Gender-Neutral) बनाने की दिशा में काम करता है।

निष्कर्ष: यह बहस क्यों महत्वपूर्ण है?

  • यह समझने में मदद करता है कि परिवार में लिंग भूमिकाएँ क्यों बनी रहती हैं।   
  • नीतिगत बदलावों को बढ़ावा देता है (जैसे, पेड लीव, बाल देखभाल सहायता)।   
  • परिवार संरचना की विविधता को समर्थन देता है और सामाजिक समानता की ओर बढ़ता है।  

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भारत में परिवार की नारीवादी समझ  

भारतीय समाज में परिवार को एक महत्वपूर्ण सामाजिक संस्था के रूप में देखा जाता है। यह विवाह, रिश्तेदारी और परंपराओं के माध्यम से संचालित होता है। हालांकि, नारीवादी दृष्टिकोण से परिवार केवल एक भावनात्मक और देखभाल प्रदान करने वाली संस्था नहीं है, बल्कि लैंगिक असमानता (Gender Inequality) और पितृसत्ता (Patriarchy) को बनाए रखने का भी एक माध्यम है।  
नारीवादी चिंतकों ने परिवार की भूमिका का विश्लेषण किया है कि यह कैसे महिलाओं के अधिकारों, स्वायत्तता और उनके सामाजिक स्थान को प्रभावित करता है। भारतीय नारीवादियों ने मुख्य रूप से परिवार में महिलाओं की अधीनता (Subordination), कार्य विभाजन (Division of Labor), जाति और पितृसत्ता के संबंध पर ध्यान केंद्रित किया है।  

1. भारतीय परिवार में नारीवादी बहस की पृष्ठभूमि 

भारतीय समाजशास्त्र में परिवार पर प्रारंभिक अध्ययन मुख्य रूप से संस्कृत ग्रंथों और हिंदू संयुक्त परिवार प्रणाली पर आधारित थे। इसमें महिलाओं की भूमिका को सीमित रूप से देखा गया।
  • 1970 और 1980 के दशक में भारतीय महिला आंदोलन (Indian Women’s Movement) के प्रभाव में नारीवादी विद्वानों ने परिवार की संरचना में महिलाओं की भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया।  
  • Leela Dube, Irawati Karve, Patricia Uberoi, Tulsi Patel जैसी नारीवादी समाजशास्त्रियों ने परिवार में लैंगिक असमानता को उजागर किया।  

2. परिवार: एक पितृसत्तात्मक संरचना (Family as a Patriarchal Institution)  

भारतीय समाज में परिवार मुख्य रूप से पितृसत्तात्मक (Patriarchal), पितृवंशीय (Patrilineal) और पितृस्थानीय (Patrilocal) है।  

महिलाओं की अधीनता के विभिन्न रूप:

1. विवाह और मातृत्व:

   - विवाह के बाद महिला को पति के परिवार में जाना पड़ता है, जिससे उसकी आर्थिक और सामाजिक निर्भरता बढ़ती है।  
   - बेटे की इच्छा (Son Preference) के कारण महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण में असमानता होती है।  
   - दहेज प्रथा महिलाओं के लिए विवाह को एक आर्थिक बोझ बना देती है।  

2. कार्य विभाजन (Division of Labor): 

   - महिलाएँ घरेलू कार्यों और बच्चों की देखभाल तक सीमित रहती हैं।  
   - पुरुषों को परिवार का मुख्य कमाने वाला (Breadwinner) माना जाता है।  
   - महिलाओं के श्रम को अवैतनिक (Unpaid Labor) और कम मूल्यवान समझा जाता है।  

3. उत्तराधिकार और संपत्ति के अधिकार:

   - 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) में संशोधन के बाद बेटियों को संपत्ति में समान अधिकार मिला, लेकिन आज भी इसे व्यवहार में लागू करने में कठिनाइयाँ हैं।  
   - दलित और आदिवासी महिलाओं को अक्सर संपत्ति अधिकारों से वंचित रखा जाता है।  

3. भारतीय परिवार पर नारीवादी दृष्टिकोण 

(i) उदारवादी नारीवाद (Liberal Feminism) और समानता का संघर्ष 

- यह विचारधारा मानती है कि कानूनी और नीतिगत सुधार महिलाओं की स्थिति में बदलाव ला सकते हैं।  
- शिक्षा, नौकरी, संपत्ति के अधिकार और विवाह में स्वतंत्रता की वकालत करता है।  
- Flavia Agnes ने भारत में महिलाओं के कानूनी अधिकारों पर काम किया।  

उदाहरण: 

- Triple Talaq (2019) का अवैध घोषित किया जाना – मुस्लिम महिलाओं को तलाक से जुड़े अन्याय से बचाने की कोशिश।  

(ii) रेडिकल नारीवाद (Radical Feminism) और परिवार का दमनकारी स्वरूप  

- यह दृष्टिकोण मानता है कि परिवार एक पुरुष प्रधान संस्था है, जहाँ महिलाओं को अधीनस्थ बनाया जाता है।  
- शादी और मातृत्व को महिलाओं पर थोपा गया एक सामाजिक नियंत्रण मानता है। 
- Shulamith Firestone ने 'The Dialectic of Sex' में बताया कि प्रजनन तकनीक (Reproductive Technology) का उपयोग करके महिलाओं को जैविक मातृत्व से मुक्त किया जाना चाहिए।  

उदाहरण: 

- घरेलू हिंसा (Domestic Violence) की व्यापकता – जिसके समाधान के लिए "Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005" लागू किया गया।  

(iii) समाजवादी नारीवाद (Socialist Feminism): परिवार और पूँजीवाद का संबंध

- परिवार केवल पितृसत्ता ही नहीं, बल्कि पूँजीवादी व्यवस्था (Capitalist System) का भी समर्थन करता है।  
- महिलाएँ अवैतनिक घरेलू श्रम करती हैं, जिससे पुरुष कार्यबल को लाभ होता है।  
- Sheila Rowbotham ने कहा कि महिलाएँ कार्यस्थल और घर, दोनों जगह डबल बर्डन (Double Burden) झेलती हैं।  

उदाहरण:  

- भारतीय महिलाओं का कार्यबल से बाहर होना – शादी और मातृत्व के बाद महिलाएँ काम छोड़ने के लिए मजबूर होती हैं।  

(iv) दलित नारीवाद (Dalit Feminism): जाति और पितृसत्ता का अंतर्संबंध 

- यह दृष्टिकोण कहता है कि सभी महिलाओं का उत्पीड़न समान नहीं होता।  
- दलित महिलाएँ जाति और लिंग आधारित दोहरे शोषण का शिकार होती हैं।  
- B. R. Ambedkar ने हिंदू विवाह और पितृसत्तात्मक संरचना की आलोचना की।  

उदाहरण:  

- हाथरस बलात्कार कांड (2020), जिसमें जातिगत भेदभाव और लैंगिक हिंसा दोनों देखे गए।  

(v) उत्तरआधुनिक नारीवाद (Postmodern Feminism): परिवार के नए स्वरूप  

- यह मानता है कि परिवार की कोई एकल परिभाषा नहीं होनी चाहिए। 
- LGBTQ+ परिवार, सिंगल-पेरेंट परिवार, लिव-इन रिलेशनशिप को सामाजिक मान्यता देने की वकालत करता है।  

उदाहरण: 

- भारत में LGBTQ+ अधिकारों की बढ़ती स्वीकृति – 2018 में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया।  

4. भारतीय नारीवादी विचारक और उनका योगदान


निष्कर्ष:

भारतीय नारीवादी चिंतकों ने परिवार को केवल एक सामाजिक इकाई के रूप में नहीं, बल्कि एक सत्ता संरचना (Power Structure) के रूप में देखा है।  

- परिवार में महिलाओं की अधीनता का मुद्दा अब कानूनी और सामाजिक रूप से मान्यता प्राप्त कर रहा है।  
- दलित और हाशिए पर रहने वाली महिलाओं के लिए पितृसत्ता और भी कठोर होती है।  
- परिवार की बदलती परिभाषाओं (LGBTQ+ और सिंगल-पेरेंट परिवार) को स्वीकृति मिल रही है। 
महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता, संपत्ति अधिकार, और कानूनी सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में और अधिक प्रयास किए जाने चाहिए।

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