M.A.2nd Sem, KU-Women's Studies, Paper-3, Unit-V (वर्ग पर समकालीन नारीवादी दृष्टिकोण) Class Notes

By

 Dr. Farzeen

Unit- V: Contemporary Feminist Perspective on Class

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समकालीन नारीवादी दृष्टिकोण और वर्ग (Contemporary Feminist Perspective on Class)  

समकालीन नारीवादी दृष्टिकोण इस विचार को प्रस्तुत करता है कि वर्ग (class) और लिंग (gender) का उत्पीड़न आपस में गहराई से जुड़ा हुआ है। यह तर्क दिया जाता है कि पूँजीवाद (Capitalism) और पितृसत्ता (Patriarchy) एक-दूसरे को सुदृढ़ करते हैं, जिससे महिलाओं, विशेष रूप से हाशिए के समुदायों की महिलाओं के लिए विशेष प्रकार के शोषण और असमानता उत्पन्न होती है।  

अंतर-संबंधित दृष्टिकोण (Intersectional Approach) 

आधुनिक नारीवादी सिद्धांत अंतर्संबंधित दृष्टिकोण (Intersectional Approach) पर बल देता है, जो यह स्वीकार करता है कि जाति, वर्ग, लैंगिक पहचान, यौनिकता और अन्य सामाजिक श्रेणियाँ आपस में मिलकर विभिन्न प्रकार के उत्पीड़न और विशेषाधिकारों को जन्म देती हैं।  

पारंपरिक वर्गीय विश्लेषण को चुनौती (Challenging Traditional Class Analysis) 

पारंपरिक मार्क्सवादी वर्गीय विश्लेषण मुख्य रूप से सर्वहारा (Proletariat) और पूँजीपति वर्ग (Bourgeoisie) के बीच संघर्ष पर केंद्रित था। हालांकि, समकालीन नारीवादी विचारक तर्क देते हैं कि यह विश्लेषण तब तक अधूरा है जब तक इसमें यह नहीं समझा जाता कि लिंग किस प्रकार वर्गीय संबंधों को प्रभावित करता है और किस प्रकार वर्गीय विभाजन महिलाओं के शोषण को बढ़ाता है।  

लैंगिक श्रम विभाजन (Gendered Labor) 

नारीवादी दृष्टिकोण यह दर्शाता है कि महिलाओं द्वारा किए गए घरेलू और अवैतनिक श्रम को समाज में न तो उचित मान्यता दी जाती है और न ही उसका मूल्यांकन किया जाता है, जबकि यह कार्य श्रमिक वर्ग के पुनरुत्पादन और समाज को बनाए रखने के लिए अनिवार्य है।  

पूँजीवाद और पितृसत्ता (Capitalism and Patriarchy) 

समाजवादी और मार्क्सवादी नारीवादियों का तर्क है कि पूँजीवाद और पितृसत्ता परस्पर जुड़े हुए हैं। पूँजीवादी व्यवस्था महिलाओं के श्रम का शोषण करती है, जबकि पितृसत्तात्मक संरचना इस शोषण को बनाए रखने में सहायता करती है।  

उदाहरण (Examples) 

1. वेतन असमानता (Wage Gap): नारीवादी विश्लेषण यह दर्शाता है कि पुरुषों और महिलाओं के वेतन में आज भी असमानता बनी हुई है, जो महिलाओं के कार्यों के अवमूल्यन और लैंगिक भेदभाव को दर्शाता है।  

2. देखभाल कार्य (Care Work): बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल का बोझ मुख्य रूप से महिलाओं पर पड़ता है, भले ही वे कार्यरत हों। इससे आर्थिक कठिनाइयाँ बढ़ती हैं और महिलाओं के अवसर सीमित होते हैं।  

3. अंतर-संबंधित उत्पीड़न (Intersectionality): रंगभेदी महिलाओं, प्रवासी महिलाओं और दिव्यांग महिलाओं को लिंग और वर्ग के दोहरे उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, जिससे सामाजिक असमानताओं को और अधिक समझने की आवश्यकता बढ़ जाती है।  

राजनीतिक प्रभाव (Political Implications)  

नारीवादी वर्गीय दृष्टिकोण उन सामाजिक और आर्थिक सुधारों की वकालत करता है जो लैंगिक असमानता को दूर कर एक अधिक न्यायपूर्ण और समान समाज की स्थापना में सहायक हों। यह नीति-निर्माण में लैंगिक-उत्तरदायी बजट (Gender-Responsive Budgeting) और महिलाओं की आर्थिक भागीदारी को बढ़ाने की माँग करता है।  

इस प्रकार, समकालीन नारीवादी वर्गीय दृष्टिकोण केवल आर्थिक असमानताओं की आलोचना नहीं करता, बल्कि यह भी दर्शाता है कि किस प्रकार पूँजीवाद और पितृसत्ता मिलकर महिलाओं के शोषण की संरचना को बनाए रखते हैं।

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मार्क्सवादी नारीवाद (Marxist Feminism)

मार्क्सवादी नारीवाद (Marxist Feminism) एक नारीवादी सिद्धांत है जो यह तर्क देता है कि महिलाओं का शोषण पूँजीवादी व्यवस्था (Capitalist System) और पितृसत्ता (Patriarchy) के आपसी संबंधों के कारण होता है। यह सिद्धांत कार्ल मार्क्स (Karl Marx) और फ्रेडरिक एंगेल्स (Friedrich Engels) के विचारों से प्रेरित है, जो वर्ग संघर्ष (Class Struggle) और श्रम के शोषण (Exploitation of Labor) पर केंद्रित थे।  
मार्क्सवादी नारीवाद का मानना है कि महिलाओं की दयनीय सामाजिक स्थिति का मुख्य कारण आर्थिक असमानता और निजी संपत्ति की व्यवस्था है। यह दृष्टिकोण उन सामाजिक संरचनाओं को चुनौती देता है जो महिलाओं को घरेलू श्रम और निम्न-स्तर के रोजगार तक सीमित रखती हैं।  
उनका मानना ​​है कि पूंजीवाद महिलाओं के अवैतनिक घरेलू श्रम पर निर्भर करता है और यह शोषण समाज के भीतर पितृसत्तात्मक सत्ता संरचनाओं को मजबूत करता है।

मुख्य सिद्धांत (Key Principles of Marxist Feminism)

1. श्रम और घरेलू कार्य का शोषण(Exploitation of Labor and Domestic Work),  अथवा लैंगिक भूमिकाओं का वर्ग संघर्ष के आधार पर विश्लेषण (Analysis of Gender Roles through Class Struggle)  

  •    पूँजीवादी समाज में महिलाएँ दोहरे शोषण (Double Exploitation) का शिकार होती हैं—एक ओर उन्हें कम वेतन पर कार्य करना पड़ता है, और दूसरी ओर वे अवैतनिक घरेलू श्रम (Unpaid Domestic Labor) करती हैं।  
  • एंगेल्स ने अपनी पुस्तक The Origin of the Family, Private Property, and the State (1884) में कहा कि निजी संपत्ति और परिवार व्यवस्था के विकास ने महिलाओं को पुरुषों के अधीन बना दिया।  
  • महिलाओं को पारंपरिक रूप से घरेलू कार्यों तक सीमित कर दिया गया है, जिससे वे आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर रहती हैं।  
  • समाज में श्रम का विभाजन इस तरह किया गया है कि महिलाएँ कम वेतन वाले या अवैतनिक कार्यों में संलग्न रहती हैं।  

2. लैंगिक विभाजन और वर्ग संघर्ष (Gender Division and Class Struggle)

  •    पारंपरिक मार्क्सवादी सिद्धांत वर्ग संघर्ष पर केंद्रित था, लेकिन मार्क्सवादी नारीवाद इस विश्लेषण में लिंग (Gender) को भी शामिल करता है। 
  •  महिलाओं को केवल मजदूर (Workers) के रूप में नहीं, बल्कि एक उत्पीड़ित लैंगिक समूह (Oppressed Gender Group) के रूप में देखा जाता है।  

3. महिलाओं की आर्थिक पराधीनता (Economic Dependence of Women)  

  •  महिलाओं की आर्थिक निर्भरता (Economic Dependence) उन्हें पुरुषों और समाज की पितृसत्तात्मक संरचना पर निर्भर रहने के लिए मजबूर करती है।  
  •  इसके कारण महिलाएँ स्वतंत्र निर्णय नहीं ले पातीं और अक्सर घरेलू हिंसा (Domestic Violence) व लैंगिक भेदभाव (Gender Discrimination) का शिकार होती हैं।  

4. पुनरुत्पादन श्रम (Reproductive Labor) का अवमूल्यन 

  • महिलाएँ केवल आर्थिक उत्पादन में ही नहीं, बल्कि पुनरुत्पादन श्रम (जैसे—बच्चों का पालन-पोषण, देखभाल कार्य) में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 
  •  यह श्रम समाज को बनाए रखने के लिए आवश्यक है, लेकिन इसे पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में कोई आर्थिक मूल्य नहीं दिया जाता।  

महत्वपूर्ण विचारक (Key Thinkers of Marxist Feminism)  

1. फ्रेडरिक एंगेल्स (Friedrich Engels)  

   - उनकी पुस्तक The Origin of the Family, Private Property, and the State (1884) में उन्होंने तर्क दिया कि निजी संपत्ति के विकास ने पितृसत्ता को मजबूत किया और महिलाओं को पुरुषों के अधीनस्थ बना दिया।  
   - उन्होंने कहा कि महिलाओं की मुक्ति का रास्ता समाजवादी क्रांति (Socialist Revolution) और निजी संपत्ति को समाप्त करने से जुड़ा हुआ है।

2. एलेक्ज़ेंड्रा कॉलोंताई (Alexandra Kollontai)  

   - वह एक रूसी क्रांतिकारी और समाजवादी नारीवादी थीं, जिन्होंने तर्क दिया कि केवल आर्थिक स्वतंत्रता से ही महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं होगा, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन भी आवश्यक हैं।  
   - उन्होंने सामूहिक देखभाल सेवाओं (Collective Childcare Services) और श्रमिक अधिकारों (Workers' Rights) का समर्थन किया।  

3. सिल्विया फेडेरिची (Silvia Federici) 

   - उन्होंने घरेलू श्रम (Domestic Work) को श्रमिक श्रेणी में रखने और महिलाओं को इसके लिए मजदूरी देने की माँग की।  
   - उनकी पुस्तक Caliban and the Witch (2004) में उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि किस प्रकार पूँजीवाद ने महिलाओं के श्रम का शोषण किया।  

4. लेविन नेंसी फ्रेजर (Nancy Fraser)  

   - उन्होंने समकालीन समाज में पूँजीवाद और पितृसत्ता के संबंधों पर विस्तृत अध्ययन किया और तर्क दिया कि श्रम बाजार और सामाजिक पुनरुत्पादन (Social Reproduction) के बीच असमानता को समझे बिना लैंगिक समानता प्राप्त नहीं की जा सकती।  

मार्क्सवादी नारीवाद का व्यावहारिक प्रभाव (Practical Impact of Marxist Feminism)  

1. श्रम अधिकारों की लड़ाई (Struggle for Labor Rights)  

   - ट्रेड यूनियनों (Trade Unions) और श्रम संगठनों (Labor Movements) ने महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाया और समान वेतन (Equal Pay) की माँग की।  
   - "Equal Pay Act" जैसे कानून मार्क्सवादी नारीवाद की माँगों का ही परिणाम थे।  

2. महिला श्रमिक आंदोलन (Women’s Labor Movement)  

   - औद्योगिक क्रांति के दौरान महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया।  
   - 20वीं शताब्दी में महिला श्रमिक संगठनों (Women's Labor Unions) ने वेतन असमानता और कार्यस्थल शोषण के खिलाफ आंदोलन किए। 

3. राजनीतिक और सामाजिक नीतियाँ (Political and Social Policies)  

   - सरकारों ने महिला सशक्तिकरण (Women’s Empowerment) के लिए कई योजनाएँ लागू कीं, जैसे—मनरेगा (MGNREGA), मातृत्व लाभ योजना (Maternity Benefit Scheme), और स्वयं सहायता समूह (Self-Help Groups)।  
   - शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में महिलाओं की पहुँच बढ़ाने के प्रयास किए गए।  

आधुनिक परिप्रेक्ष्य और आलोचना (Modern Perspective and Criticism)  

1. आधुनिक समाज में मार्क्सवादी नारीवाद (Marxist Feminism in Modern Society)  

   - वर्तमान में यह सिद्धांत इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि वैश्वीकरण (Globalization) और नवउदारवाद (Neoliberalism) ने महिलाओं के शोषण को किस प्रकार बढ़ाया है।  
   - डिजिटल श्रम और गिग इकॉनमी (Gig Economy) में महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा को लेकर भी यह विचारधारा महत्वपूर्ण बनी हुई है।  

2. आलोचना (Criticism) 

   - कुछ नारीवादी यह तर्क देते हैं कि मार्क्सवादी नारीवाद लिंग आधारित भेदभाव (Gender-Based Discrimination) को पूरी तरह से वर्ग संघर्ष तक सीमित कर देता है और सांस्कृतिक व मनोवैज्ञानिक पहलुओं को अनदेखा करता है।  
   - इसे पश्चिमी समाज के संदर्भ में अधिक प्रभावी माना गया है, जबकि विकासशील देशों में जाति और सामाजिक संरचना को भी शामिल करने की आवश्यकता है।  

निष्कर्ष (Conclusion) 

मार्क्सवादी नारीवाद एक महत्वपूर्ण नारीवादी विचारधारा है जो यह दर्शाती है कि पूँजीवादी संरचना और पितृसत्ता के संयुक्त प्रभाव से महिलाओं का शोषण होता है। यह विचारधारा महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता, घरेलू श्रम की मान्यता, और श्रम बाजार में समान अवसरों की माँग करती है। हालाँकि, इसे और अधिक समावेशी बनाने के लिए अन्य सामाजिक कारकों, जैसे—जाति, नस्ल और सांस्कृतिक भिन्नताओं को भी ध्यान में रखना आवश्यक है।

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लिंग और वर्ग की अंतर्संबद्धता (Intersectionality of Gender and Class)

महिलाओं के श्रम का दोहरा बोझ (Women’s Unpaid Labor in Households) 

- महिलाएँ घरेलू कार्य, बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल करती हैं, लेकिन इसे आर्थिक उत्पादन का हिस्सा नहीं माना जाता।  

- घरेलू श्रम का कोई वेतन नहीं होता, जिससे महिलाएँ आर्थिक रूप से कमजोर बनी रहती हैं।  

वेतन और कार्य अवसरों में असमानता (Disparities in Wages and Work Opportunities) 

- महिलाएँ औसतन पुरुषों की तुलना में कम वेतन पाती हैं (Gender Pay Gap)।  

- औपचारिक क्षेत्र (Formal Sector) में महिलाओं की भागीदारी सीमित होती है, और उन्हें गैर-संगठित क्षेत्र (Informal Sector) में अधिक संख्या में रोजगार मिलता है, जहाँ कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं होती।  

- कामकाज की जगहों पर भेदभाव और यौन उत्पीड़न की घटनाएँ महिलाओं के आर्थिक अवसरों को प्रभावित करती हैं।  

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महिलाओं के लिए राज्य की नीतियाँ और कल्याणकारी योजनाएँ (State Policies and Welfare for Women)  

महिला सशक्तिकरण से जुड़ी सरकारी योजनाएँ (Government Schemes for Women Empowerment)  

सरकार ने महिलाओं की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक स्थिति को सुधारने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं।  

1. स्वयं सहायता समूह (SHGs – Self Help Groups) 

- महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए छोटे समूहों के माध्यम से सूक्ष्म-वित्त (Microfinance) प्रदान किया जाता है।  

- ग्रामीण विकास में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।  

2. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA, 2005)

- इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को 100 दिन का रोजगार गारंटी के रूप में दिया जाता है।  

- इस योजना में महिला भागीदारी को बढ़ाने पर जोर दिया गया है।  

3. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (Beti Bachao, Beti Padhao, 2015) 

- इस योजना का उद्देश्य कन्या भ्रूण हत्या को रोकना और लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित करना है।  

महिला सशक्तिकरण में चुनौतियाँ (Challenges in Implementation and Gender-Responsive Budgeting)

- कई योजनाएँ प्रभावी क्रियान्वयन के अभाव में वांछित परिणाम नहीं दे पातीं।  

- कई क्षेत्रों में सामाजिक बाधाओं के कारण महिलाओं को इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता।  

- महिला सशक्तिकरण से संबंधित बजटिंग अभी भी पुरुष-प्रधान आर्थिक संरचना के कारण प्रभावी नहीं हो पाई है।  

निष्कर्ष  

समकालीन नारीवादी दृष्टिकोण के तहत वर्गीय विश्लेषण यह दर्शाता है कि आर्थिक असमानता, पूँजीवाद और लैंगिक भेदभाव एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। मार्क्सवादी नारीवाद पूँजीवादी व्यवस्था की आलोचना करता है और इसे महिलाओं के शोषण का मुख्य कारण मानता है। साथ ही, राज्य द्वारा चलाई गई योजनाएँ महिलाओं की स्थिति सुधारने में मददगार हो सकती हैं, लेकिन उनके प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता है। महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय को एकीकृत रूप से देखना आवश्यक है।

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